(Nine-fold relationship between aatma and Parmatma)
As per the hymns of Kulshekhar Alwar (Perumal thirumozhi), Bhagwat Ramanujacharya and Pillai Likacharya Swami, nine fold relationship exists between swa-swaroop (aatman) and Par-swaroop.
पिता च रक्षकः शेषी भर्ता ज्ञेयो रमापतिः।
स्वाम्याधारो ममात्मा च भोक्ता चाद्यः मनुदितः।।
- पिता-पुत्र भावः (Father-Son)
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः (गीता ९.१७)
(इस सम्पूर्ण जगत को धारण करनेवाला एवं कर्मों के फल के अनुसार गति देने वाला पिता, माता, पितामह मैं ही हूँ।)
पिता त्वं माता त्वं दयिततनयस्तवं प्रियसुहृत,
त्वमेव त्वं मित्रं गुरुरपि गतिश्चासि जगताम्
त्वदीयसत्वद्भृत्यस्तव परिजनस्तवद्गतिरहं,
प्रपन्नश्चैवं सत्यहमपि तवैवास्मि हि भारः।। (स्त्रोत-रत्न.६०)
हे प्रभो! आपही इस संसार के पिता, माता, प्रिय पुत्र, बान्धव, प्रिय मित्र और अज्ञान दूर करने वाले गुरु हैं। मैं आपका हूँ, आपसे भरण-पोषण पाने योग्य हूँ, आपका दास तथा आपको ही अपना गन्तव समझने वाला और शरणागत हूँ। आपहि मेरे उपाय और उपेय हैं।
2. रक्ष्य-रक्षक (Protector-protected)
सीता-राम ही एकमात्र रक्षक हैं। ‘प्रपन्न-परित्राण’ में लोकाचार्य स्वामी निम्न प्रमाण देते हैं:
- प्रह्लाद: अगर पिता रक्षक होते तो हिरण्यकशिपू ने प्रह्लाद की रक्षा की होती।
- विभीसन: अगर भाई रक्षक होते तो रावण ने विभीसन की रक्षा की होती।
- भरत: यदि माता रक्षक होती तो कैकयी ने भरत की रक्षा की होती।
- द्रौपदी: यदि पति रक्षक होते तो द्रौपदी के पाँच महापराक्रमी, अपराजेय भाइयों ने उनकी रक्षा की होती।
- ययाति: यदि धन रक्षक होता तो इनकी रक्षा हो गयी होती।
- नहुष: यदि बड़ा पद रक्षक होता तो नहुष की रक्षा हो गयी होती।
इन सभी की रक्षा भगवान श्रीमन नारायण ने ही की। जब इन्होंने समस्त परिजनों के प्रति आशाओं को त्यागकर भगवान की शरणागति की तो इनकी रक्षा हुयी।
3. शेष-शेषी (Master-servant) (दास्य भाव):
शेषी यानि अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक भगवान श्रीमन्नारायण हैं और हम सब चराचर जगत के जीव उन्हीं के शेष यानि अंश हैं। भाष्यकार स्वामीजी ‘वेदार्थ संग्रह’ में शेष शब्द व्याख्या करते हैं- “जो अपने स्वार्थ को त्यागकर परहित के लिये अपने सर्व कर्मों को अर्पण करता है” (स+ईष)। रामानुज संप्रदाय में शेषभाव को ही जीवात्मा का स्वरुप कहा गया है। जीवात्मा भगवान का शेष और भगवान के उपयोग के लिये है। यह आत्मा भगवान के सिवा किसी अन्य का शेष नहीं होता एवं स्वतंत्र भी नहीं होता। अनंत नाग भगवान की आदि काल से सेवा कर रहे हैं, इसलिए वो ‘आदि शेष’ कहलाते हैं।
अहं सर्वं करिष्यामि जाग्रतः स्वपतश्च ते (रामायण)
(मैं जागते और सोते, हर अवस्था में आपकी सेवा करूँगा)
निवासशैय्यासनपादुकांशुकोपधानवर्षातपवरणादिभिः।
शरीरभेदैस्तवशेषतांगतैर्यथोचितं शेष इतीर्यते जनै:।। (स्त्रोत रत्न.४०)
इस श्लोक में यामुनाचार्य स्वामीजी अनंत शेष की दिव्य सेवा का वर्णन कर रहें हैं। भगवान के निवास योग्य दिव्य मंदिर, शयन करने के लिये कोमल शैया, बैठने के लायक दिव्य सिंहासन, चलते समय पैरों की रक्षा हेतु खड़ाऊं, ओढ़ने का दिव्य वस्त्र, तकिया, वर्षा और धूप से बचानेवाला दिव्य छत्र और भी अनेक प्रकार की दिव्य सेवा। भगवान वेंकटेश्वर के दिव्य धाम तिरुमला पर्वत श्रृंखला को भी शेषजी के स्वरुप होने के कारण ‘शेषाचल’ कहते हैं। शेषजी ने ‘रामानुजाचार्य’ के अवतार में भगवान को शंख-चक्र अर्पित किया।
4. भतृ॑-भार्या (Husband-wife):
वेदों का कथन है- “स्त्रियं प्रायं इतरं जगत”। सारे जीवात्मा (स्त्री और पुरुष) स्वरूपतः स्त्रीलिंग हैं और नारायण ही समस्त जीवात्माओं के एकमात्र पति हैं। जीवात्मा भगवान के द्वारा भोग्य है। कन्यादान के वक्त इस वैदिक मंत्र का उच्चारण होता है- “विष्णुरूपाय वराय ददामि”। जीवात्मा केवल परमात्मा का भोग्य है। शरणागति ही जीवात्मा और परमात्मा का विवाह है तथा मूल-मंत्र ही मंगलसूत्र है। जीवात्मा को एक पतिव्रता स्त्री की तरह केवल श्रीमन नारायण की ही सेवा करनी चाहिए। इसलिए प्रपन्नों के लिये देवांतर पूजा का निषेध किया गया है।
5. ज्ञातृ-ज्ञेय (Known-knower)
भगवान ज्ञेय हैं। हम शास्त्र, गुरु और सत्संग के द्वारा उनका ज्ञान लेते हैं।
6. स्व-स्वामी (Owner- owned)
भगवान सभी जीवात्माओं के स्वामी हैं।
7. आधार-आधेय (Bearer-Bound or Holder–Held)
भगवान सभी जीवात्माओं के अन्तर्यामी हैं पर जीवात्मा इससे अनजान हैं। इस तरह से भगवान सभी जीवात्माओं को आधार दे रहे हैं।
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय। मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।गीता 7.7।।
“जैसे सूतकी मणियाँ सूतके धागेमें पिरोयी हुई होती हैं ऐसे ही सम्पूर्ण जगत् मेरेमें ही ओतप्रोत है”। बाहर से देखने में सूत नजर नहीं आता, केवल मणि नजर आता है। उसी तरह से भगवान सूक्ष्म रूप से हर जीवात्मा के अन्दर वास करते हैं। जिस तरह धागा एक ही है (न द्वितीयः), उसी तरह से सभी जीवों के अन्दर वास करने वाला परमात्मा एक ही है।
8. शरीर-आत्मा (Body and Soul)
समस्त आत्मा और प्रकृति भगवान के शरीर हैं और भगवान सबके अन्तर्यामी अंतरात्मा। The concept is explained in below articles:-
Is Vedas mutually contradictory?
Brahma Sutra 1.1.2 (Creation of Universe)
9.भोक्तृ-भोज्ञ (Enjoyer and enjoyed)
भगवान भोक्ता हैं और हम सभी भोग्य। जीवात्मा भगवान के श्री विग्रह को देखकर और उनकी सेवा कर आनंदित होते हैं। इस दृष्टिकोण से भगवान भोग्य हुए और जीवात्मा भोक्ता। इस प्रकार जीवात्मा भगवान के लिये भोग्य है और भगवान जीवात्मा के लिये।
References:
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