इस पाशुर में आण्डाल एक ऐसी सखी को जगा रही है, जिसका भाई कण्णन् (भगवान् कृष्ण) का ख़ास सखा है, जो वर्णाश्रम धर्म का पालन नहीं करता।
जब पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा से भगवान का कैंकर्य करते है, तब वर्णाश्रम धर्म के पालन का महत्व नहीं रहता। पर जब हम कैंकर्य समाप्त कर लौकिक कार्य में लग जाते है, तब वर्णाश्रम धर्म का पालन महत्वपूर्ण हो जाता है।
पिछले पासूर में गोदा गोपी को उसके कुल को ध्यान रख संबोधन करती हैं (– ग्वालों के कुल में जन्मी सुनहरी लता, हेम लता!), इस पासूर में गोपी को उसके भाई के सम्बन्ध से पुकारती हैं (भगवत-कैंकर्य निष्ठ ग्वाले की बहन)| ग्वाला लक्ष्मण की तरह कन्हैया के कैंकर्य रूपी धन से युक्त है (लक्ष्मणो लक्ष्मी सम्पन्नः) । जिस दिवस गोदा गोपी के गृह उत्थापन हेतु पधारती हैं, उस दिवस उनका भाई कन्हैया के किसी विशेष कैंकर्य हेतु गया था। भगवत-भागवत-कैंकर्य विशेष धर्म है कि गायों को दुहना आदि वर्णाश्रम धर्म सामान्य धर्म हैं। प्रबल-निमित्त होने पर सामान्य धर्म को छोड़कर विशेष धर्म का पालन करना चाहिए| सामान्य परिस्थिति में उत्तम अधिकारी को भी नित्य-नैमित्यिक धर्म का परित्याग नहीं करना चाहिए।
कनैत्तु इळन्गऱ्ऱु एरुमै कन्ऱुक्कु इरन्गि
निनैत्तु मुलै वळिये निन्ऱु पाल् सोर
ननैत्तु इल्लम् सेऱाक्कुम् नऱ्चेल्वन् तन्गाय्
पनित्तलै वीळ निन् वासल् कडै पऱ्ऱि
सिनत्तिनाल् तेन् इलन्गैक् कोमानैच् चेऱ्ऱ
मनत्तुक्कु इनियानैप् पाडवुम् नी वाय् तिऱवाय्
इनित्तान् एळुन्दिराय् ईदु एन्न पेर् उऱक्कम्
अनैत्तु इल्लत्तारुम् अऱिन्दु एलोर् एम्बावाय्


भैंसे जिनके छोटे छोटे बछड़े है, अपने बछड़ों के लिये, उनके बारे में सोंचते हुये अपने थनो में दूध अधिक मात्रा में छोड़ रही है, उनके थनो से बहते दूध से सारा घर आँगन में कीचड़ सा हो गया।
हे ! ऐसे घर में रहने वाली, भगवान् कृष्ण के कैंकर्य धन से धनि ग्वाल की बहन, हम तेरे घर के प्रवेश द्वार पर खड़ी है, ओस की बुँदे हमारे सर पर गिर रही है।
हम भगवान राम, जिन्होंने सुन्दर लंका के अधिपति रावण पर क्रोध कर उसे मार दिया, जिनका नाम आनन्ददायक है,उनका गुण गा रहे हैं ।
हे! सखी ! कुछ बोल नहीं रही हो, कितनी लम्बी निद्रा है तुम्हारी, अब तो उठो, तिरुवाय्प्पाडि (गोकुल} के सभी वासी तुम्हारी निद्रा के बारे में जान गये है।

कनैत्तु : हताश और आशाहीन होकर जोर से आवाज कर रहे हैं;
चूँकि गोप कन्हैया की सेवा में गया है, गायों को दूहने वाला कोई नहीं है। गायों के थान कठोर हो रहें हैं और वो दूहे जाने हेतु जोर जोर से आवाज कर रही हैं।
आतंरिक अर्थ:
भक्तों के संसार में डूबकर दुख पाते देह भगवान व्यथित होते हैं, और गजेन्द्र की पुकार पर दौड़ पड़ते हैं| इस शब्द का अर्थ रामानुज स्वामीजी जैसे कृपा-मात्र-प्रसन्नाचार्य भी है जिन्होंने संसारियों के हित में गोपुरम पर चढ़कर सबको अष्टाक्षर का उपदेश किया।
इळन्गऱ्ऱु एरुमै : युवा बछड़ों के साथ भैंस;
कन्ऱुक्कु इरन्गि : बछड़ों के लिए दया महसूस करना;
गायें अपने बच्चों के लिए चिंतित हैं जो उनका दुग्धपान करने में असमर्थ हैं ।
आतंरिक अर्थ:
भगवान अनंत जन्मों से हमें प्राप्त करने के लिए स्वयं प्रयत्न कर रहे हैं किन्तु हम उनकी कृपा का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं ।
निनैत्तु मुलै वळिये निन्ऱु पाल् सोर : (विचार में डूबे रहने के कारण) गाय के थन से दूध लगातार बहने लगता है;
ननैत्तु इल्लम् : पूरे स्थान को गीला करते हुए
सेऱाक्कुम् : धूल से मिलने के कारण कीचड़युक्त हो जाता है
जैसे श्री रामचंद्र हनुमान को लगे चोट को सहन नहीं कर पाते, कृष्ण द्रौपदी के दुखों को सहन नहीं कर पाते, वैकुंठनाथ भी सुक्ष्मावस्था में अचितवत पड़े जीवात्मा के दुखों को सहन नहीं कर पाते और उनके कल्याण हेतु श्रृष्टि करते हैं; जीवात्मा को पुर्वकर्मानुसार शरीर और ज्ञान प्रदान करते हैं ।
यहाँ गाय के चार थान का अर्थ श्री भाष्य, गीता भाष्य, भगवद विषय और रहस्य ग्रंथ हैं । आचार्य ही कृपा मात्र से प्रसन्न होने वाले गायें हैं और शिष्य बछड़े ।
नऱ्चेल्वन् : जिसे कृष्ण की सेवा का सबसे बड़ा धन प्राप्त है;
कैंकर्य ही जीवात्मा की सबसे बड़ी संपत्ति है । लक्ष्मणो लक्ष्मी सम्पन्नः, लक्ष्मणो लक्ष्मी वर्धनः (रामायण) ।
तै. उ. २.१
ॐ ब्रह्मविदाप्नोति परम्। तदेषाऽभ्युक्ता।सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म। यो वेद निहितं गुहायां परमे व्योमन्।सोऽश्नुते सर्वान् कामान् सह ब्रह्मणा विपश्चितेति॥
तन्गाय् : ओह! उसकी बहन;
ऐसे परम-वैष्णव का देह-सम्बन्धी होना परम सौभाग्य है ।
शास्त्रों में अहंकार की निंदा की गयी है लेकिन – आचार्याभिमान मोक्षाधिकार होता है|
पनित्तलै : सिर पर गिर रहे ओस की बूंदों के बीच;
वीळ निन् वासल् कडै पऱ्ऱि : हम आपके आंगन में खड़े हैं;
सिनत्तिनाल् : क्रोध के कारण मारा गया (सीता देवी के अपहरण के लिए);
तेन् इलन्गैक् कोमानैच् चेऱ्ऱ : लंका का धनी राजा रावण
रावण के दिए घावों से भगवान विचलित नहीं हुए लेकिन जब रावण ने भगवान के तिरुवडी अर्थात हनुमान जी पर प्रहार किया तो भगवान क्रोधित हुए और रावण पर बाणों की वर्षा कर कर दिया ।
भगवान भागवतों पर किये गए अपचारों को क्षमा नहीं करते ।
आतंरिक अर्थ:
आचार्य हमारे स्वातन्त्रियम को नष्ट कर शरणागत बनाते हैं ।
मनत्तुक्कु इनियानैप् : श्री राम जो हमारे मन को प्रसन्न करते हैं;
हमारे मन को प्रसन्न करने वाले: इस शब्द का अर्थ केवल श्री रामचंद्र ही हो सकता है । राम का अर्थ ही है : रमयति इति रामः ।
पाडवुम् : (हम) गाने के बाद भी;
नी वाय् तिऱवाय् : तुम अपने मुखारविन्द नहीं खोलती, अवाक हो!
सखी , “तुम अन्दर क्यों नहीं आती, बाहर ओस में क्यों खड़ी हो?
गोदा, “सारा द्वार तो दूध बहने से कीचड़युक्त हो गया है, हम कैसे आयें?”
सखी , “तुम उस छलिये कन्हैया का नाम मत लो”
गोदा, “हम प्रभु श्री रामचन्द्र जी के गुण गा रही हैं जो सबके मन में रमण करने वाले हैं, शत्रुओं पर भी दया करने वाले हैं”
इनित्तान् : कम से कम अब
एळुन्दिराय् : उठ जाओ
ईदु एन्न पेर् उऱक्कम् : ऐसा भी क्या अच्छी निद्रा है
अनैत्तु इल्लत्तारुम् : आस पड़ोस के सभी लोग
अऱिन्दु : जान गए कि तुम सो रही हो
एलोर् एम्बावाय् : चलो अपना व्रत पूरा करें
ऐसे ज्ञानी भाई की बहन इतनी अज्ञानी कैसे हो सकती है । सात्विक जन ब्रह्म-मुहूर्त में उठते हैं, भगवान भक्तों की पुकार सुन उठते हैं और तुम चरमोपाय निष्ट भागवत गोष्टी को देख उठती हो|
अगर तुम भगवद-विषय में लीन हो तो ऐसे विषय का अकेले आनंद नहीं उठाना चाहिए|