तिरुपावै 20वाँ पासूर

जब गोपियों ने नीला देवी (नप्पिनै) के व्यवहार की आलोचना की जो उनके स्वरुप और स्वभाव से मेल नहीं खाता| नीला देवी शांत रहीं और प्रभु से बात करने के समुचित क्षण की प्रतीक्षा करती रहीं| शायद नप्पिनै क्रोधित हो गयी हैं, ऐसा सोचते हुए गोपियों ने प्रभु की स्तुति की| प्रभु भी चुप रहे| शायद कन्हैया भी क्रोधित हों क्योंकि हमने नप्पिनै की आलोचना की| भगवान के क्रोध को शान्त करने के लिए चलो नप्पिनै की प्रशंसा करते हैं|

इस पाशुर में देवी आन्डाळ् (गोदाम्बा) नप्पिन्नै अम्मा और भगवान् कृष्ण दोनों को जगा रही है ।

मुप्पत्तु मूवर् अमरर्क्कु मुन् सेन्ऱु
  कप्पम् तविर्क्कुम् कलिये तुयिल् एळाय्
सेप्पम् उडैयाय् तिऱल् उडैयाय् सेऱ्ऱार्क्कु
  वेप्पम् कोडुक्कुम् विमला तुयिल् एळाय्
सेप्पन्न मेन् मुलै सेव्वाय्च् चिऱु मरुन्गुल्
  नप्पिन्नै नन्गाय् तिरुवे तुयिल् एळाय्
उक्कमुम् तट्टु ओळियुम् तन्दु उन् मणाळनै
  इप्पोदे एम्मै नीराट्टु एलोर् एम्बावाय्

३३ कोटि देवताओं के कष्ट निवारण का सामर्थ्य रखने वाले हे कृष्ण , उठों !भक्तों की रक्षा करने वाले , शत्रुओं का संहार करने वाले उठो! मुख पर लालिमा लिये, स्वर्ण कान्ति लिये विकसित उरोजों वाली, पतली कमर वाली हे नप्पिन्नै पिराट्टी ! आप तो माता महालक्ष्मी सी लग रही हो, उठिये. आप हमें हमारे व्रत अनुष्ठान के लिये, ताड़पत्र से बने पंखे, दर्पण और आपके स्वामी  कण्णन् आदि प्रदान कर , हमें स्नान करवाइये ।

मुप्पत्तु मूवर्: जब 33 करोड़

अमरर्क्कु: देव

मुन् सेन्ऱु : जब आपकी शरण में आते हैं (संकट में हैं),

कप्पम् तविर्क्कुम् : तो आप उन्हें बचाते हैं।

कलिये : हे बहादुर कृष्ण

तुयिल् एळाय् : अपने शयन से उठो

यह एक तरह का व्यंग्यात्मक वचन है। हे कन्हैया! क्या आप केवल बहुमत की सुनते हैं? आप केवल उनके उद्धारकर्ता हैं जिनकी संख्या 33 करोड़ है? देवता का अर्थ है एक शक्ति, जो हमें दिखाई नहीं देती। वे ‘अमर्त्य’ हैं लेकिन हम ‘मर्त्य’ हैं। यदि आप रक्षक हैं, तो आपको पहले हमें बचाना चाहिए। हम तुम्हारे बिना मर रहे हैं।

ऐसा लगता है कि आप केवल स्वार्थी लोगों को बचाते हैं, उन लोगों को नहीं जो आपके दर्शन के अलावा कुछ नहीं चाहते। इंद्र के लिए नरकासुर के खिलाफ कृष्ण द्वारा युद्ध जीतने के बाद, वह जल्द ही भूल गया और कृष्ण के खिलाफ ‘पारिजात पुष्प’ के लिए युद्ध छेड़ दिया। ऐसा लगता है कि आप ऐसे स्वार्थी देवताओं की ही मदद करते हैं।

आजकल एक डिस्को सिद्धांत प्रचलित हुआ है कि सभी ईश्वर एक हैं| भगवान अनेक हैं| क्या यह संभव है? क्या अनेक हवाएं संभव हैं? क्या वायु बहुवचन हो सकता है? नहीं, इसी तरह ईश्वर भी बहुवचन नहीं हो सकता। ईश्वर की पहचान वह है जो सर्वव्यापी (विष्णु) है। जो प्रत्येक प्राणी के भीतर है और जिसके भीतर (नारायण) प्रत्येक प्राणी है। वेदों ने पुरुष को परिभाषित किया:

 सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्

और अंत में :

ह्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ

भू देवी और श्री देवी जिनकी पत्नियाँ हैं| जिनके वक्षस्थल में श्री देवी का निवास है, वही भगवान हैं|

सेप्पम् उडैयाय् : विश्वसनीय (भक्तों की रक्षा में);

तिऱल् उडैयाय् : शक्तिशाली (भक्तों के शत्रुओं को मारने के लिए);

सेऱ्ऱार्क्कु : दुष्टों के लिए
  वेप्पम् : भय

कोडुक्कुम् : देने में सक्षम

विमला : दोषरहित

तुयिल् एळाय् : शयन से उठो

समस्त हे गुणों से रहित जो हो, उसे विमला कहते हैं| इस संबोधन की विशेषता है कि भगवान दुष्टों के ह्रदय में कम्पन पैदा करते हैं लेकिन उनमें कोई भी हेय गुण नहीं आता|

क्योंकि वह एक को मारता है और दूसरे की रक्षा करता है, कुछ लोग भगवान को पक्षपाती मान सकते हैं, लेकिन चूंकि भगवान केवल किसी के पिछले कार्यों (कर्म) के कारण अनुग्रह या क्रोध करते हैं, वह जो करता है वह न्याय है, पक्षपात नहीं; तो भगवान हमेशा शुद्ध (दोषरहित) है

वेदान्त सूत्र भी कहता है : वैषम्यनैघृण्ये न सापेक्षत्वात् (ब्रह्म सूत्र 2.1.34)

ब्रह्म की परिभाषा है :

यस्मात् सर्वेश्वरात् निखिलहेयप्रत्यनीक स्वरूपात् सत्यसंकल्पात् ज्ञानानन्दाद्यनन्तकल्याणगुणात् सर्वज्ञात् सर्वशक्ते: परमकारुणिकात् परस्मात् पुंसः श्रृष्टिस्थितिप्रलयाः प्रवर्तते, तत् ब्रह्मेति सूत्रार्थः (श्रीभाष्य)।

ब्रह्म को परिभाषित करते हुए रामानुज स्वामीजी कहते हैं:

  • जो समस्त दोषों से रहित हैं। (अखिल हेय प्रत्यनिक)। निर्गुण निरंजन शब्दों  का अर्थ समस्त दूषणों और रज, तम  गुणों से रहित होना है।
  • जो अनन्त कल्याण गुणों से युक्त हैं जैसे सत्यकाम, सत्यसंकल्प, कारुण्य, ज्ञान, बल, आदि। (अनंत कल्याण गुणाकरम)
  • श्रृष्टिस्थितिसंघारत्वं: जो सृष्टि की उत्पत्ति, पोषण और संहार को पुर्णतः नियंत्रित करते हैं।
  • ज्ञानान्दैकस्वरुपं: संपूर्ण ज्ञान और अपरिमित आनंद का भण्डार हैं।
  • वह जो श्रीदेवीजी, भूदेवीजी और नीलादेवीजी के प्राण प्यारे नाथ हैं।

सेप्पन्न : स्वर्णमय पर्वत के समान

मेन् मुलै : कोमल स्तन

सेव्वाय्च् : गुलाबी मुख/ होंठ

चिऱु मरुन्गुल् : कोमल पतले कमर
  नप्पिन्नै नन्गाय् : हे आकर्षक मंत्रमुग्ध करने वाली नीला देवी

तिरुवे : जो श्री देवी/ लक्ष्मी माता के समान हैं

तुयिल् एळाय् : शयन से उठो

श्रृंगार :

हम कई श्रृंगार श्लोकों से आते हैं और असहज महसूस करते हैं। मां हर लिहाज से बेहद खूबसूरत हैं। प्रकटन का अर्थ है कि सभी भौतिक रूप अत्यंत सुंदर होने चाहिए। उन्होंने पिता को आकर्षित किया । यह पिता के लिए आनंदपूर्ण है, बच्चों के लिए नहीं। लेकिन, यह बच्चे के लिए जीवन देने वाली वस्तु है, इसलिए इसे आभारी होना चाहिए। क्या इसकी स्तुति करना, पूजा करना हमारा कर्तव्य नहीं है? जब भी बालक को भूख लगती है तो वह माँ के स्तन (उपजीवनम्) में चला जाता है। यह बच्चे के लिए जीवन रक्षक है। पिता के लिए, यह भोग (उपभोगम्) है।हम अगर असहज महसूस करते हैं तो इसका अर्थ है कि हमने स्वयं को पिता के स्थान पर रख लिया| हमें संतान की भावना से इसका अनुसंधान करना चाहिए|
जब मां भगवान के साथ होती है तो भगवान आनंदित होते हैं और जगत की श्रृष्टि करते हैं| अपने संतानों के अपराधों को क्षमा करने हेतु माता पहले भगवान को अपने सौन्दर्य और मीठे वचनों से आकर्षित करती हैं और उन्हें अपने शरण में लेने की प्रार्थना करती हैं|

हम अगर असहज महसूस करते हैं तो इसका अर्थ है कि हमने स्वयं को पिता के स्थान पर रख लिया| हमें संतान की भावना से इसका अनुसंधान करना चाहिए|
जब मां भगवान के साथ होती है तो उसमें आनंद आता है। इस प्रकार, उनमें कुछ अच्छे गुण उभर आते हैं

उक्कमुम् : हस्त-पंखा

तट्टु ओळियुम् : दर्पण

तन्दु उन् मणाळनै : और आपके प्यारे कान्त (श्रीकांत कृष्ण)
  इप्पोदे : जल्द से जल्द

एम्मै : हमलोग

नीराट्टु : स्नान करेंगे (कृष्णानुभव में)

एलोर् एम्बावाय् : व्रत पूरा करेंगे

स्वापदेश

  1. युगल को जगाने का यह आखिरी पासूर है|

17 वें पासूर का आरम्भ “अ” अक्षर से होता है : अम्बरमे तन्निरे सोरे अरम सैयुम

18वें पासूर का आरम्भ “उ” अक्षर से होता है : उन्दमद कलित्तन ओडाद तोल वलियन

20 वाँ पासूर “म” अक्षर से आरम्भ होता है: मुपत्तु मूवर

एक साथ ये अक्षर ओम् बनते हैं|  19 वाँ पासूर लुप्त-चतुर्थी है जिसका विस्तृत विवरण लोकाचार्य स्वामी मुमुक्षुपड़ी रहस्य ग्रंथ में करते हैं|

2. गोपियों द्वारा मांगे गए वस्तुओं का आतंरिक अर्थ नारायण महामंत्र है (ॐ नमो नारायणाय)

1. दर्पण : (अ, ओम ) :- दर्पण स्व-स्वरुप का दर्शन कराता है| शरीर के अन्दर विद्यमान आत्मा सिर्फ भगवान की संपत्ति है

2. हस्त-पंखा : ( नमः) :- यद्यपि हम ज्ञान-स्वरुप हैं और हमारे पास ज्ञान है, अभिमानवश हमारे अन्दर स्वतंत्र बुद्धि आता है| हमारे अन्दर कर्तृत्व अभिमान आता है और हम सोचते हैं कि ये कार्य मेरे द्वारा किया जा रहा है| पसीना हमारे कर्तृत्व का प्रतीक है और नमः का प्रतीक हस्त-पंखा है|

3. कन्हैया : नारायण

4. नोम्बू : आय :- कैंकर्य

विशेष अर्थ: आचार्य

मुप्पत्तु मूवर् : तीन प्रकार की इच्छा वाले : ऐश्वर्यार्थी, कैवल्यार्थी, कैंकर्यार्थी

अमरर्क्कु : जीवात्मा

मुन् सेन्ऱु : जो कृपा मात्र से प्रसन्न होकर, स्वयं आकर, हमारे स्वरुप की रक्षा करते हैं

ऐसे अनेक वैभव रामानुज स्वामीजी के हैं जो पासूर में अनुसंधान किये जा सकते हैं|


  कप्पम् तविर्क्कुम्: शिष्यों के भय को दूर करते हैं|

कलिये : हे शिष्यों

तुयिल् एळाय् : नींद से जागो, गोष्ठी में आओ

सेप्पन्न मेन् मुलै : कोमल स्तन भक्ति और प्रेम का प्रतीक हैं

सेव्वाय्च् : गुलाबी होंठ ज्ञान के प्रतीक हैं

चिऱु मरुन्गुल् : पतली कमर वैराग्य के प्रतीक हैं

इन सभी गुणों से युक्त आचार्य के कालक्षेप सुनने हेतु मण्डप में आओ|

दिव्य स्नान का अर्थ आचार्याभिमान है

Author: ramanujramprapnna

studying Ramanuj school of Vishishtadvait vedant

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