गोपियों की नींद हमसे अलग है। हम भगवान की उपेक्षा से सो रहे हैं। नींद का अर्थ है, आसपास का अज्ञान होना। हम ईश्वर के लिए 'शेष' होने के अपने स्वरूप से अनभिज्ञ हैं। गोपियाँ अपने स्वरूप के ज्ञान से सो रही हैं। वे भौतिक सुखों से अनभिज्ञ और कृष्ण के साथ अपने संबंधों के ज्ञान से सो रहे हैं।
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2.69 ।।
वह जो सभी प्राणियों के लिए रात्रि है, उसमें स्व-नियंत्रित मनुष्य जाग रहा है; जब सभी प्राणी जाग जाते हैं, तो मुनि (ऋषि) के लिए रात होती है।
अनगिनत गोपियों में से 10 गोपियाँ सोई हुई हैं और वे गोष्ठी में शामिल नहीं हुई हैं। यह प्रतीकात्मक है और सुंदर कहानी के पीछे बहुत सारे छिपे अर्थ हैं।
कीसु कीसु एन्ऱु एन्गुम् आनैच्चात्तन् कलन्दु
पेसिन पेच्चरवम् केट्टिलैयो पेय्प्पेण्णे
कासुम् पिरप्पुम् कलकलप्पक् कै पेर्त्तु
वास नऱुम् कुळल् आय्च्चियर् मत्तिनाल्
ओसै पडुत्त तयिर् अरवम् केट्टिलैयो
नायगप् पेण्पिळ्ळाय् नारायणन् मूर्ति
केसवनैप् पाडवुम् नी केट्टे किडत्तियो
तेसम् उडैयाय् तिऱ एलोर् एम्बावाय्
श्रीरंगम उ वे मीमांसा शिरोमणि भरतन् स्वामी द्वारा अनुगृहीत सप्तम गाथा का संस्कृत छन्द अनुवाद:
7.
कीचुकीच्विति सर्वत्र भारद्वाजाख्यपक्षिभिः।
किं संश्लिष्य कृतं रावं नाश्रौषीर्मतिवर्जिते ! ।।
सुगन्धिकुन्तला गोप्यः कोमला दधिमन्थने ।
प्रवृत्तास्तद्रवं तासां भूषाणां शिञ्जया समम् ।।
मिलितं नायिकेऽस्माकम् अश्रौषीद् भवती न किम्।
नारायणं हि सौशील्यविग्रहं केशवं वयम् ।।
कीर्तयामस्तथाऽपि त्वं शृण्वती शयिताऽस्यहो ।
महातेजस्विनि ! क्षिप्रम् उद्घाटय कवाटिकाम् ।।७॥
आज की गाथा में गोदा सखियों सहित दूसरी गोपी को जगाने जाती हैं जो सभी की नायकी है। पहले पासूर में युवा गोपी को जगाती हैं तो अब नायकी को। गोदा किसी को छोड़ना नहीं चाहती। यदि कोई वैष्णव ज्ञान अनुष्ठान में कम भी हो तो उसे त्यागना नहीं चाहिए। सत्संग के प्रभाव से वो शीघ्र ही ज्ञान-अनुष्ठान से युक्त हो जाएगा। (गीता: अपि चेत् सुदुराचारो …)
“देखो! भारद्वाज पक्षियाँ ‘कीच्-कीच्’ शोर मचा रही हैं। क्या तुम ये प्रभात के लक्षण नहीं सुन रही हो?”
“तुम सभी मिलकर शोर मचाओगे तो पक्षियाँ तो जाग ही जायेंगी”
“एक पक्षी नहीं, सभी स्थानों पर पक्षियाँ शोर मचा रही हैं। दाना चुगने जाने से पूर्व पक्षियाँ अपने परिजनों से बात करती हैं, बच्चों को दुलार करती हैं और पूरे दिन के निकल जाती हैं”।
“गोकुल में भी पंच-लक्ष गोपियाँ हैं। तुम सभी उठ जाओगी तो पक्षियों को भी लगेगा कि सुबह हो गयी।”
“अरे मतिवर्जिता (पागल लडकी)! देखो दूसरा लक्षण बताती हूँ। गोकुल की आजीविका ही है दधि-मन्थन करना। क्या तुम दही मथने की ध्वनि नहीं सुन रही हो? गोकुल के दूध एवं दही इतने गाढ़े होते हैं कि उन्हें मथने हेतु कठिन श्रम करना होता है। इससे जोर से दही मथने का शोर होता है। गोपिकाओं के आभूषण आपस में टकराते हैं, उनकी ध्वनि तुम नहीं सुन रही? श्रम के कारण उनके केश-बन्धन खुल जाते हैं, उनके केशों में लगे पुष्प टूट कर बिखर जाते हैं। क्या तुम वो सुगन्ध का अनुभव नहीं कर रही? दधि-मन्थन के समय वो प्रेम से ‘गोविन्द! दामोदर! माधव!” संकीर्तन कर रही हैं”
(दधि मन्थन, आभूषण के खनक एवं नाम संकीर्तन की ध्वनि दशगुणित आवरणों को पर कर वैकुण्ठ तक जा रही है और वहाँ के नित्य सूरियों को मानो लज्जित कर रही हों कि आपलोग क्या परमपद का आनन्द ले रहे हो? अभी आनन्द तो व्रज में है।)
और तुम हमारी नायिका हो। बाहर आओ, हमें दर्शन दो।”
गोपी विचार करती है कि हमारा स्वरूप तो शेषत्व का है। ये मुझे नायिका कहकर उपहास कर रही हैं। वो मौन हो जाती है। तब बाहर खड़ी गोपियाँ अन्दर झाँककर देखती हैं तो वो गोपी तेजोवान दिख रही थी। अर्थात तो कृष्णानुभव में लीन थी।
“सर्व-अन्तर्यामी नारायण मूर्ति (साकार) बनकर केशव नाम से हमारे बीच आये हैं। जब उन्होंने हमें रास-क्रीडा को बुलाया है तो तुम हृदय में उनके दर्शन कर क्यों मुग्ध हो? हे तेजस्विनी! बाहर आओ! दरवाजा खोलो ”
नायकी गोपी को अपनी भूल का अनुभव होता है और वो बाहर आकर गोष्ठी में शामिल हो जाती है।
(केशव नाम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। केशी दैत्य को मारने वाले को केशव कहते हैं। ब्रह्मरुद्रयो: जनक: केशवः। क अर्थात ब्रह्मा, ईश अर्थात शिव (क + ईश – केश)। इन दोनों जिनके अंग से जन्म लेते हैं वो हैं केशव।
केशव मार्गशीर्ष माह के लिए अभिमानी देवता हैं। वह श्रीमन नारायण के उप-व्यूह मूर्ति में से एक है। इसलिए इस महीने में केशव की पूजा करनी होती है
पक्षियों के आपस में बात करने के दो आन्तरिक अर्थ हैं:
दिव्या दम्पति अपने बच्चों के संस्कार बंधन के बारे में एक दूसरे से बात कर रही हैं और उन्हें इससे बाहर निकालने की योजना बना रही हैं।
जब एक भागवत किसी कारणवश कुछ दिनों के लिए गोष्ठी से दूर चला जाता है तो उसके अलगाव का दर्द कम करने हेतु भक्तजन आपस में उस भागवत का मंगलाशासन करते हैं|
संस्कृत अनुवाद

हिंदी छन्द अनुवाद

अंडाल सिर्फ एक गोपी को जगाने से संतुष्ट नहीं होती है, बल्कि चाहती हैं कि गोकुल में प्रत्येक गोपी इस दिव्य अनुभव में शामिल हो और इसलिए प्रत्येक के दरवाजे पर दस्तक देती हैं । एक श्रेष्ठ यह भक्त चाहता है कि हर व्यक्ति सर्वेश्वर भगवान का समान रूप से आनंद ले, क्योंकि वह सभी के पिता हैं।
जैसे दादा अपने पोते को अपने बच्चे से ज्यादा प्यार करता है; भागवान भी अपने भक्त से ज्यादा अपने भक्त के भक्त को प्यार करते हैं। इस प्रकार, हमें भगवान के भक्त के भक्तों की सेवा करनी चाहिए। हम जितना नीचे उतरते हैं, हमें भगवान से उतना ही प्यार होता है।

कीसु कीसु एन्ऱु – समूह में पक्षियों का प्रकीर्णन;
एन्गुम– सभी दिशाओं में;
आनैच्चात्तन् – भारद्वाज पाक्षी;
चिड़ियाँ / भारद्वाज पाक्षी के कोरस (जो एक बच्चे की मीठी बात की तरह लगता है) को सुबह के समय में देखना। ānaiccāttan का अर्थ कुवलयापीड हाथी (आनई) का वध करने वाले या गजेन्द्र का उद्धार करने वाले भगवान कृष्ण भी है|
गोदा: ओ भ्रान्त बालिके! तुम सो रही हो?
भ्रान्त बालिका गोपी: क्या भोर हो गयी? इसका प्रमाण क्या है?
गोदा: क्या तुम भारद्वाज पक्षियों के चहचहाहट को नहीं सुन रही?
भ्रान्त बालिका गोपी: एक पक्षी के जागने से क्या होता है? वो भी शायद इस कारण क्योंकि तुम शोर मचा रही हो|
गोदा: सिर्फ एक पक्षी नहीं सखी! सभी दिशाओं में पक्षियाँ आपस में बात कर रही हैं|
पक्षी पूरे दिन भोजन इकट्ठा करते हैं और शाम को लौटते हैं। सुबह में, वे आगामी जुदाई के दर्द में बात कर रहे हैं। क्या आप इसे नहीं सुन पा रहे हैं? जैसे पक्षी जुदाई के दर्द में बात कर रहे हैं, क्या कान्हा से अलगाव महसूस नहीं होगा? जब पक्षी भी अपने जीवनसाथी को छोड़ने के लिए चिंतित होते हैं और अलग रहते हैं तो आप कृष्ण से अलग रहते हुए कैसे सो सकते हैं? हे गोपी उठो! कान्हा से मिलने चलें।
आतंरिक अर्थ:
सभी पक्षियों के आपस में बात करने का अर्थ है सत्संग| भटके जीवों को भक्तगण सत्संग में लाते हैं और उनका उद्धार करते हैं| जब सभी भक्त सत्संग गोष्ठी कर रहे हैं तब तुम सो रही हो?
मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च।।10.9।।
भागवत भगवान के गुणानुवाद में ही अपना कालक्षेप करते हैं|
भाग्योदयेन बहुजन्म समर्जितेन। सत्संगमम् च लभते पुरुषो यदा वै।
अज्ञान हेतुकृत मोह मदान्धकारनाशं विधाय हि तदो दयते विवेक । (भागवत-माहात्म्यम् 2.76).
अर्थ: एक जन्म का नही अनन्त जन्मों के भाग्य जब उदय होते है तो हो सत्संग कथा और संतो के प्रवचन सुनने इच्छा हो पाती हो । ये कृपा गुरु और गोविन्द की होती है। जो हमें ऐसे बचन सुनाने और सुनने का मोका मिलता है
जब द्रवहिं दीन दयाल राघव साधू-संगत पाईये| (विनयपत्रिका)
पेसिन – आपस में बात करना;
पेच्चरवम् – बात की आवाज़;
केट्टिलैयो? – क्या आपने (यह) नहीं सुना?
पेय्प्पेण्णे – भ्रान्त बालिके! (मतिवर्जिता लड़की) (भक्ति से अच्छी तरह वाकिफ है लेकिन वही भूल गई है);
कल मुग्धा गोपी का उत्थापन हुआ। आज जिस गोपी का उत्थापन हो रहा है, उसे भ्रान्त या मतिवर्जिता कहकर सम्बोधित किया गया है। चूँकि ये आपस में सखियाँ हैं, इसलिए कठोर शब्दों का भी प्रयोग करते हैं। जब शयन कर रही गोपी रूठ जाती है, तब उसे ‘नायिका’ और ‘तेजस्विनी’ कहकर उसकी प्रशंसा भी करती हैं।
आतंरिक अर्थ:
- दिव्या दम्पति अपने बच्चों के संस्कार बंधन के बारे में एक दूसरे से बात कर रही हैं और उन्हें इससे बाहर निकालने की योजना बना रही हैं।
- जब एक भागवत किसी कारणवश कुछ दिनों के लिए गोष्ठी से दूर चला जाता है तो उसके अलगाव का दर्द कम करने हेतु भक्तजन आपस में उस भागवत का मंगलाशासन करते हैं|
‘भ्रान्त बालिका गोपिका ‘ ‘भागवत-अनुभव’ में खो जाने वाले भागवत-भक्त हैं और परिणामस्वरूप एक प्रलाप जैसा दिखता है! ऐसा नारायण का ‘निर्हितुकी-कृपा’ है।
कासुम् – एक प्रकार का आभूषण जिसे विशेष रूप से ग्वालों द्वारा पहना जाता है;
पिरप्पुम्– एक अन्य आभूषण;
कलकलप्पक्: गोपिकाएँ एक साथ शोर कर रहे हैं जब वे मंथन की रस्सी का उपयोग करके दही को मथ रहे हैं।
कै पेर्त्तु– अपने हाथों को आगे-पीछे करें;
वास नऱुम् कुळल् – अत्यंत सुगंधित केशबंधों के साथ;
गोकुल में सभी प्रातःकाल उठ जाते हैं और मिलकर दधिमंथन करते हैं| थकावट के कारण, उनके बालों के गाँठ खुल जाते हैं और जो सर्वत्र मीठी खुशबू भर देते हैं। गोकुल में दही इतना गाढ़ा होता है कि इसे कठिनाई और कठिन प्रयत्न से मथना पड़ता है और इस कारण इनके बालों के गुच्छे खुल जाते हैं और हर जगह खुशबू फैलाते हैं।
गोकुला की गोपियों के हाथ चूड़ियों और अन्य आभूषणों से सुसज्जित हैं। वे मंथन करते हुए जोर-जोर से गा रही हैं। मंथन करते हुए कान्हा के दिव्य नाम गा रहे हैं। क्या आप उन्हें नहीं सुन सकते? कुलशेखर आलवार जीभ के सामने नमन करते हैं और इसे नारायण के नाम को पीने का अनुरोध करते हैं। गोकुल की गोपियाँ हमेशा नारायण के नाम पर गाती और इनके गुणानुवाद में मग्न रहती थीं।
आतंरिक अर्थ:
अष्टाक्षरी, द्वयं और चरम श्लोक (जो हमें समाश्रयण के दौरान हमारे आचार्य से प्राप्त होते हैं) के रहस्य अर्थों को एक साथ सुना जाता है, और लोग मुकुंद के शेष और परतंत्र होने के उनके स्वभाव का अनुभव कर रहे हैं। रहस्य-मंत्रों की सुगंध पर्यावरण को दिव्य बना रही है।
आय्च्चियर् मत्तिनाल् ओसै पडुत्त तयिर् अरवम् केट्टिलैयो?
आय्च्चियर्– गोपिकाएँ;
मत्तिनाल्– दही मथनी के साथ;
ओसै पडुत्त– शोर;
तयिर् अरवम्– दही की आवाज;
केट्टिलैयो? – क्या तुम नहीं सुन रही?
गोपियों ने चूड़ियाँ, मंगलसूत्र और अन्य गहने पहने थे। गोकुल में दूध निकालना आसान काम है क्योंकि गायों के थन दूध से भरे होते हैं लेकिन उन्हें मथना महान मांसपेशियों की शक्ति का काम है। दूध में इतना मक्खन होता है कि उन्हें दूध को मथने के लिए अत्यधिक शक्ति का इस्तेमाल करना पड़ता है। जब गोपियाँ दूध को मथती हैं, तो उनका शरीर हिल जाता था और उनके आभूषण आवाज करते थे। चूड़ियों के अलावा दही मथने से भी आवाज आ रही है।
आतंरिक अर्थ:
वेद व्यास और आचार्यों ने वेदों को स्मृति और उपब्राह्मनों सहित मथा और जीवात्मा का शेषत्व और पारतंत्रियम घोषित किया। इसका अनुभव कर भागवत जन भगवान का संकीर्तन कर रहे हैं, क्या तुम नहीं सुन रही?
वेदान्त ग्रंथ दूध हैं और पूर्वाचार्यों के रहस्य ग्रंथ मक्खन।
नायगप् पेण्पिळ्ळाय् नारायणन् मूर्ति
नायगप् पेण्पिळ्ळाय्! – ओ! सभी युवा लड़कियों के नेता; (ओ कन्या मणि)
नारायणन् मूर्ति– नारायण रूपी कृष्ण, नारायण के अवतार;
(अंदर गोपी को अपनी गलती का अहसास हुआ – जब मैं भागवतदास भागवतों का नौकर हूं, अब एक नेता के रूप में बुलाकर व्यंग कर रही हैं। तुरंत अंडाल आगे गाती है, ताकि अन्य गोपियों से जुड़ने के लिए गोपी शीघ्र आगे बढ़े।)
हम नारायण की स्तुति गा रहे हैं, जिन्होंने हमारे बीच अवतार लिया। ऐसा है उनका कारुण्य और आप सो रहे हैं?
नारायण का अर्थ है, जो हमें बाहर से और अंदर से आधार दे| जो हर आत्मा के अन्दर व्याप्त हैं (अंतर्व्याप्ति) और हर आत्मा जिनके अन्दर व्याप्त है (बहिर्ब्याप्ति) । नारायण हमारे भीतर हैं और हम नारायण के भीतर हैं। वह हमारे लिए अदृश्य है, फिर भी वह नीचे आते हैं और हमें दिखाई देते है। ऐसा है उनका कारुण्य।
आतंरिक अर्थ
क्षीरसागर में अनंत शेष की शैया पर निवास करने वाले भगवान ने हमारे ह्रदय को क्षीरसागर बनाया (उपनिषद् दहर आकाश कहते हैं) और आत्मा को अनंत शेष की शैया बना अन्तर्यामी रूप में निवास कर रहे हैं। अपार करुणाकर भगवान ने और अधिक सुलभ होना चाहा और अर्चा मूर्ति रूप में प्रकट हुए। करुणाकर भगवान इतने सुलभ हुए और तुम सो रही हो? उठो और भगवान वटपत्रशायी के कैंकर्य में उपस्थित हो।
केसवनैप् पाडवुम् नी केट्टे किडत्तियो
केसवनैप्: सुंदर घुंघराले बाल वाले, केशी को मारने वाले।
पाडवुम्– जबकि भी (हम) गाते हैं;
नी– आप
केट्टे किडत्तियो– क्या हमारा गाना सुनने के बाद भी आप इस तरह लेट सकते हैं?
केशव का अर्थ है लंबे सुंदर बाल वाले। चलो दिव्य व्रत करें और उसकी सुंदरता का आनंद लें।
केशव का अर्थ है दानव केशी (केशी-हंता) का वध करने वाले। अंदर गोपी सो रही है और बाहर गोपियों के गीतों का आनंद ले रही है। वह जानती थी कि अगर वह बाहर आती है, तो वे गाना बंद कर देंगे, ताकि वह नाटक कर रही थी जैसे कि वह अभी भी सो रही है। उसे झटका देने के लिए, गोपियों ने ‘केशव’ नाम का उल्लेख किया। गोपी अंदर झटके से उठी कि कृष्ण खतरे में है, वह केशी से लड़ रहा है। राम ने खर-दूषण की 14,000 सेना को मारने के बाद, उसके शरीर पर घावों के साथ वापसी की। उसे देखते ही, सीता जल्दी से चली गई और उसे प्यार और स्नेह से गले लगा लिया। आप कृष्ण और केसी के बीच लड़ाई के बारे में सुनकर भी कैसे सो सकते हैं?
केशव का अर्थ है ब्रह्मा और शिव के पिता। केशव ब्रह्मांड का एकमात्र रक्षक है। ऐसे भगवान ने हमें अपने साथ खेलने के लिए आमंत्रित किया है और आप सो रहे हैं?
केशव मार्गशीर्ष माह के लिए अभिमानी देवता हैं। वह श्रीमन नारायण के उप-व्यूह मूर्ति में से एक है। इसलिए इस महीने में केशव की पूजा करनी होती है
आतंरिक अर्थ:
कर्म, ज्ञान और भक्ति योगी को बहुत चिंता करनी पड़ती है क्योंकि किसी भी प्रक्रिया के अनियंत्रित होने के बाद उन्हें फिर से जन्म लेना होगा। एक शरणागत चिंताओं से रहित है और उसे आनंद है क्योंकि उसने सभी उपायों को त्याग दिया है। भागवान स्वयं उनके लिए उपाय हैं। अंदर गोपी एक ऐसी आदर्श शरणागत है।
तेसम् उडैयाय् तिऱ एलोर् एम्बावाय्
तेसम् उडैयाय्– ओ चमचमाती सुंदरी! (हे तेजस्विनी!)
तिऱ– कृपया दरवाजा खोलो;
गोदा खिड़की से अंदर की खामोशी से आश्चर्यचकित होकर झाँकती है और भगवद-गुणानुवाद अनुभव कर रही गोपी के दिव्य तेज का आभास होता है। इसलिए गोदा अब उससे दरवाजा खोलने का अनुरोध करता है ताकि वे उसकी तेज का पूरा आनंद ले सकें।
आप तपस्वी-हित-पुरुषार्थ के ज्ञान होने के कारण ही तेजमय हैं। बाहर आओ और अपनी खुशी की बाढ़ से हमें आह्लादित करो।
आतंरिक अर्थ:
गोपी को ‘भागवत-पारतंत्रियम ’का एहसास हुआ और वो कैंकर्य करने के लिए बाहर आयी।
स्वापदेश:
तिरुपावै का मुख्य उद्देश्य भक्तों के साथ है। अच्छी संगती में होना, भगवान के अनंत कल्याण गुणों के अनुभव में होना और अपनी कर्तव्य और जिम्मेदारी निभाना।



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