तत्त्व त्रय: सूत्र 1

  1. मुमुक्षु चेतन के लिए तत्त्व-त्रय ज्ञान अवश्य अपेक्षित है।

मोक्ष के लिए तत्त्व-त्रय ज्ञान आवश्यक है। तत्त्व-त्रय ज्ञान के लिए मोक्ष की इच्छा (मुमुक्षा) होना आवश्यक है। भगवान तभी तक विलम्ब करते हैं जब चेतन में मोक्ष की इच्छा (मुमुक्षुत्व) का अभाव है। मूल में ‘चेतन’ कहना सारगर्भित है। मुमुक्षु होने पर ही जीव का चेतन होना सफल हुआ। इसके पूर्व तो चैतन्य व्यर्थ था।

चूँकि हम चेतन हैं, भगवान हमारे मुमुक्षुत्व की अपेक्षा करते हैं। मुमुक्षुत्व उत्पन्न होते ही भगवान रक्षा में विलम्ब नहीं करते।

“तामरैयाल केल्वन ओरुवनये नोक्कुम्” (सरो योगी आलवार)

चेतन जीवात्मा एकमात्र लक्ष्मीपति भगवान को ही उपाय एवं उपेय बनाता है। वही भोग्य एवं भोक्ता हैं। यह जान लेने पर हमारा ‘चेतन’ होना सफल हुआ।

प्रश्न: आप कहते हैं कि जो मुमुक्षु है, वही तत्त्व-त्रय ज्ञान का अधिकारी है। किन्तु बिना तत्त्व-त्रय ज्ञान के मुमुक्षुत्व आएगा कैसे?

उत्तर: शास्त्र कहते हैं:
“परीक्ष्य लोकान् कर्मचितान् ब्राह्मणो निर्वेदमायान्नास्त्यकृतः कृतेन । तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्” (मुण्डक 1.२.12)

सकाम कर्मों से नित्यत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसा ज्ञान होने पर वह जीवात्मा तत्त्व ज्ञान को आकांक्षी हो जाता है।

“जायमानम् हि पुरुषं यं पश्येन मधुसूदन| सात्विकं स तु विज्ञेयः स वै मोक्ष्यार्थ चिन्तकः”

जीवात्मा के सुकृतों को आधार मानकर भगवान उनमें अद्वेष उत्पन्न कर उसे अपने अविमुख कर, साधु-संगति प्रदान कर उसमें सत्त्व-गुण की निरन्तर वृद्धि करते हैं। ऐसे जीव को भगवान जायमान काल में ही अर्थात गर्भावस्था में ही कटाक्ष प्रदान करते हैं। जिसे ही भगवान जायमान कटाक्ष प्रदान करते हैं, वो ही उसी जन्म में मुमुक्षु हो जाता है।

प्रश्न: आपने कहा कि बिना तत्त्व-त्रय ज्ञान के मोक्ष प्राप्त नहीं होता। किन्तु शास्त्र कहते हैं कि वैष्णव अभिमान मात्र से पशु-पक्षियों को भी मोक्ष प्राप्त हो जाता है:

पशुर्मनुष्यः पक्षीवा ये च वैष्णवसंश्रयाः ।
तेनैव ते प्रयास्यन्ति त‌द्विष्णोः परमंपदम् ।।
यं यं स्पृशति पाणिभ्यां यं यं पश्यति चक्षुषा ।
स्थावराण्यपि मुच्यन्ते कि पुनर्बान्धवा जनाः ।।

उत्तर: पशु-पक्षियों में तो मुमुक्षा ही नहीं होता। इस कारण तो उनमें तत्त्व-त्रय ज्ञान की अपेक्षा नहीं कर सकते। भगवान उनके अभिमानी वैष्णव का तत्त्व-त्रय ज्ञान देख उन्हें मुक्त करते हैं। यहाँ मुमुक्षुत्व सद्वारक है। किन्तु मनुष्यों में तो मुमुक्षा सम्भव है। हमें तो मुमुक्षा एवं तत्त्व-त्रय ज्ञान के पश्चात ही मोक्ष प्राप्त होगा।

विलक्षण मोक्षाधिकार निर्णय ग्रन्थ में आचार्य देवराज मुनि कहते हैं कि प्रयास के बाद भी यदि पूर्ण रूप से तत्त्व-त्रय ज्ञान विकसित नहीं होता, तो भी भगवान रामानुज स्वामी के सम्बंध से हमें मोक्ष प्रदान करेंगे। रामानुज स्वामी हमारे अभिमानी हैं एवं उनके अभिमान से उनके संबंधियों का मोक्ष है।

किन्तु तत्त्व-त्रय ज्ञान की आकांक्षा एवं उसके हेतु प्रयत्न तो अनिवार्य है।

प्रश्न: “तमेव विद्वान अमृत …”। शास्त्रों में एकमात्र ईश्वर का ज्ञान होने से मोक्ष बताया गया है। तो तत्त्व-त्रय ज्ञान की क्या आवश्यकता है?

उत्तर: नारायण को जानने के लिए ‘नार’ का ज्ञान होना आवश्यक है। “स्वेतर-समस्त-वस्तु-विलक्षण” भगवान को समस्त वस्तु विशिष्ट जानने हेतु सभी तत्त्वों का ज्ञान आवश्यक है। ईश्वर कौन है? “जन्माद्यस्य यतः”। इस कारण चेतन एवं अचेतन शारीरक भगवान को तत्त्वतः जानने हेतु तत्त्व-त्रय का ज्ञान आवश्यक है।

“तत्त्व-त्रय ज्ञान आवश्यक है”, ऐसा कहने से एक ही तत्त्व है, ऐसा ही तत्त्व मानने वालों का कुदृष्टि भी दूर हुआ।

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Author: ramanujramprapnna

studying Ramanuj school of Vishishtadvait vedant

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