श्री वैष्णव गृह-आराधन विधि

।। अस्मद्गुरुभ्यो नमः।।

।। श्रीमते रामानुजाय नमः ।।

।। श्रीमद्वरवरमुनये नमः ।।

(संक्षिप्त श्री वैष्णव गृह आराधना, जो 20-30 में पूर्ण हो सकता है, द्राविड प्रबन्धों एवं संस्कृत स्तोत्रों के साथ के साथ दास ने प्रस्तुत किया है| सम्प्रदाय की आराधना-पद्धति के अनुसार, सांप्रदायिक विद्वानों से चर्चा करते हुए दास ने यह लिखा है| दोषों के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ|भगवान के प्रपन्न होने के कारण यदि में किसी हेतु के निमित्त (आयुष्य बढ़ जाये, काम निर्बाध पूर्ण हो जाये आदि) संकल्प आदि करना सम्प्रदाय विरुद्ध है| हम केवल भगवान की आज्ञा से एवं भगवान के कैंकर्यरूप पूजा ही करते हैं| मोक्ष की कामना से भी भगवान की आराधना करना प्रपत्ति-निष्ठा के विरुद्ध है| एकमात्र भगवान का निस्वार्थ कैंकर्य ही उद्देश्य होना चाहिए|)

ध्यात्वा रहस्यत्रितयं तत्वयाथात्म्यदर्पणम् । परव्यूहादिकान् पत्युः प्रकारान् प्रणिधाय च ॥ (वरवरमुनि दिनचर्या.15)

इस प्रमाण के अनुसार, प्रातःकाल “हरि! हरि! हरि!” का उच्चारण कर उठने के बाद, हाथ-पैर धोकर, आचमन करके रहस्य-मन्त्रार्थों का अनुसन्धान करना चाहिए| प्रातःकाल अर्चिरादी मार्ग एवं भगवान के पाँच रूपों का भी ध्यान करना चाहिए|

अर्चिरादि सार

तत्पश्चात स्नानादि, संध्या-वन्दनादि के पश्चात तुलसी पत्र अमनिया करके (तोड़कर) पूजा पात्र में रखना चाहिए| असावधानी से, जल्दबाजी में या अशुद्धावस्था में तुलसी का स्पर्श करना पाप माना गया है|

आराधन के लिए दीप प्रज्वलित करें और कम-से-कम आराधन समाप्त होने तक भगवान के बायीं ओर दीप जलती रहनी चाहिए|

फिर गृह मन्दिर के पास जाकर भगवान का सुप्रभात करते हैं| भगवान के सुप्रभात से पूर्व आलवारों एवं रामानुज स्वामी का सुप्रभात गा सकते हैं| मन्त्र गुरुपरंपरा एवं श्लोक गुरुपरम्परा का अनुसन्धान कर सकते हैं|

(स्त्रियों और पुरुषों, दोनों को गृह-आराधना का ज्ञान होना चाहिए| स्त्रियाँ मन्दिर की सफाई, माला बनाना, प्रसाद पकाना, भजन निवेदित करना आदि सेवा कर सकती हैं| स्त्री शरीर से शालग्राम एवं प्राण-प्रतिष्ठित विग्रहों के स्पर्श का निषेध है|  लड्डू-गोपाल आदि उन विग्रहों की, जिनकी प्राण-प्रतिष्ठा नहीं हुयी है, उनकी सेवा वो कर सकती हैं| यदि घर के पुरुष न हों तो स्त्रियाँ शालग्राम जी के स्पर्श बिना उनका सामान्य आराधन कर सकती हैं| यदि घर की स्त्रियाँ न हों तब पुरुषों को भी भगवान के लिए पकवान तैयार करना, माला बनाना आदि कैंकर्य आने चाहिए| यदि घर से बाहर जा रहे हों, तब जैसे बच्चे को या तो अपने साथ ले जाते हैं या किसी अभिभावक के पास छोड़ जाते हैं; वैसे ही भगवान को या तो अपने साथ ले जाएँ या किसी उत्तम वैष्णव के पास आराधन की व्यवस्था कर दें|)

श्री वैष्णव गुरु परम्परा

सर्वप्रथम द्वारपालों को प्रणाम करते हैं:

ओं चण्डादिद्वारपालेभ्यो नमः।

ओं प्रचण्डादिद्वारपालेभ्यो नमः ।

अब भगवान की स्तुति करते हैं:

  • स्नान के पश्चात उर्ध्व पुण्ड्र धारण करते वक्त हम प्रायः मन्त्रार्थों का ध्यान करते हैं।
  • वाक्य-गुरूपरम्परा,  मन्त्र-गुरूपरम्परा एवं अपने आचार्य से लेकर रंगनाथ भगवान तक के आचार्यों के तनियाँ का पाठ करें।
  • तीनों रहस्य मन्त्रों का ध्यान करें।
  • आचार्य के श्री चरणों को शिर पर धारण करें एवं आचार्य श्रीपादतीर्थ 2 बार धारण करें।
  • घर के स्त्रियां और अन्य सदस्य भी तिरुआराधना मे भाग ले सकते हैं – पुष्पमाला बनाना, तिरुआराधना के स्थान को साफ करना ,तिरुआराधना सामग्री को तैयार करना, नैवेद्य भोग बनाना, दिव्यप्रबन्ध-स्तोत्र पाठ करना आदि सेवा करके । वो कदापि भी शालग्राम जी का स्पर्श न करें।
  • भगवान के लिए पंच-पात्र की व्यवस्था रखें एवं स्वच्छ प्लोत वस्त्र साथ रखें, जिनके एक कोने से भगवान के चरण पोंछना और दुसरे कोने से श्री भगवान के हस्त और मुख(होंट) पोंछना चाहिए ।
  • श्री आराधना के बीच में आवश्यक हो जाने पर अपने हाथ धोने के लिये एक अलग छोटा कलश रखें ।
  • उत्थापन से स्नान के समय आचार्य से श्रीभगवान इस क्रम में सेवा करें (आरोहण) और भोग, अर्चना, पुष्प चन्दन समर्पण करते समय श्रीभगवान से आचार्य इस क्रम में सेवा करें (अवरोहण) । 
  • ‘‘स्वाचार्य हस्तेन आराधनाभिमुखो भवेयम्’’ इस उक्ति के अनुसार हमारे हाथों द्वारा आचार्य ही भगवान की आराधना कर रहे है हम केवल निमित्त मात्र है , इस भाव को रखते हुये आराधना प्रारम्भ करें ।

नमो नमो वाङ्मनसातिभूमये नमो नमो वाङ्मनसैकभूमये ।

नमो नमोऽनन्तमहाविभूतये नमो नमोऽनन्तदयैकसिन्धवे ॥ (स्तोत्र रत्न.२१)

न धर्मनिष्ठोऽस्मि न चात्मवेदी न भक्तिमांस्त्वच्चरणारविन्दे ।

अकिञ्चनो ऽनन्यगतिश्शरण्य ! त्वत्पादमूलं शरणं प्रपद्ये ॥ (स्तोत्र रत्न.२२)

अपराधसहस्रभाजनं पतितं भीमभवार्णवोदरे ।

अगतिं शरणागतं हरे ! कृपया केवलमात्मसात्कुरु ॥ (स्तोत्र रत्न.४८)

कौसल्या सुप्रजा राम पूर्वासंध्या प्रवर्तते ।

उत्तिष्ठ नरशार्दूल कर्तव्यं दैवमाह्निकम् ॥ (श्री रामायण १.२३.१)

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद उत्तिष्ठ गरुडध्वज ।

उत्तिष्ठ कमलाकांत त्रैलोक्यं मंगलं कुरु ॥ (वेंकटेश सुप्रभात.२)

मातस्समस्त जगतां मधुकैटभारेः, वक्षोविहारिणि मनोहर दिव्यमूर्ते ।

श्रीस्वामिनि श्रितजनप्रिय दानशीले, श्री वेंकटेश दयिते तव सुप्रभातम् ॥ (वेंकटेश सुप्रभात.३)

जितन्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन ।

नमस्तेऽस्तु हृषीकेश महापुरुष पूर्वज ॥ (जितन्ते स्तोत्र)

नायगनाय् नित्र., नन्दगोपनुडैय कोयिल् काप्पाने ! * कोडित् तोन्नम् तोरण वायिल् काप्पाने ! *

मणिक् कदवम् ताळ् तिर. वाय् * आयर् सिरु. मियरोमुक्कु **

अरे. परे. मायन् मणिवण्णन्, नेन्नले वाय् नेर्दान् * तूयोमाय् वन्दोम् तुयिलेळ. प् पाडुवान् *

वायालु मुन्नमुन्नम् माट्रादे अम्मा ! *  नी नेय निलैक् कदवम् नीक्केलोर् एम्पावाय् ॥ (तिरुपावै .११)

मारि मलै मुळे. जिल्, मन्निक् किडन्दुर. ङ्गुम् * सीरिय सिङ्गम् अरि. वुटुत् ती विळि. त्तु *

वेरि मयिर् पोङ्ग एप्पाडुम् पेन्र्दुदरि. * मूरि निमिन्दु मुळ.ङ्गिप् पुर. प्पटुप् **

पोदरुमा पोले , नी पूवैप् पू वण्णा * उन् कोयिल् निन्नु. इन्ग्न्गने पोन्दरुळि *

 कोप्पुडैय सीरिय सिङ्गासनत्तिरुन्दु * याम् वन्दकारियम् आराय्न्दु अरुळेलोर् एम्पावाय् ॥ (तिरुपावै .१८)

अनु. इव्वुगकम् अळन्दाय्!, अडि पोट्रि * सेत्र.ङ्गुत् तेन्निलङ्गै सेट्राय् ! तिर.ल् पोट्रि *

पोन्न. च् सगडम् उदैत्ताय् ! पुगळ्. पोट्रि * कन्नु. कुणिला एरि.न्दाय्! कळ. ल् पोट्रि **

कुन्नु. कुडैयाय् एडुत्ताय् !, गुणम् पोट्रि * वेन्नु. पगै केटुक्कुम् निन् कैयिल् वेल् पोट्रि *

एन्नेन्. उन् सेवगमे एत्तिप् परै. कोळ्वान् * इन्नु. याम् वन्दोम् इरङ्गेलोर् एम्पावाय्  ॥ (तिरुपावै .२४)

कूर्मादीन् दिव्यलोकान् तदनुमणिमयम् मण्डपं तत्रशेषं

तस्मिन्धर्माधिपीठं तदुपरिकमलं चामर ग्राहिणीश्च |

विष्णुर्देवीर्विभूषायुधगणमुरगम् पादुके वैनतेयं

सेनेशं द्वारपालान् कुमुदमुखगणान् विष्णुभक्तान् प्रपद्ये ||

अब तीन बार ताली बजाकर बोलें (इसे तालत्रयम् कहते- पहले दाहिने हाथ से बायें हाथ पर ताली, फिर बायें से दाहिने हाथ फिर दाहिने हाथ से बायें हाथ) एवं मन्दिर का खोलें:

यं वायवे नमः। वीर्याय अस्त्राय फट्।

भगवान को पंखा झलें (https://ramanujcreations.com/) एवं रात्री के पुष्प आदि निकाल लें| पूजा के पात्रों को धोकर ‘पात्र-परिकल्पनम्’ प्रारम्भ करें| पूर्णकुम्भ (श्रीकावेरी) में जल डालें एवं उसमें तुलसी, एला (इलाइची), भीमसेनी कर्पूर (खाने योग्य कर्पूर), केसर, पुष्प आदि डालकर मिश्रित कर लें| (आजकल बाजार में तीर्थ पोड़ी मिल जाता है, या घर में ही महीन पीस कर रख लें|) 

अब पंचपात्र आदि पूजा पात्रों को समुचित क्रम में रख लें:

  1. अर्घ्य पात्र (भगवान के श्री हस्त धुलाने के लिए)
  2. पाद्य पात्र (भगवान के श्री पैर धुलाने के लिए)
  3. आचमनीय पात्र (भगवान को आचमन करवाने के लिए)
  4. स्नानीय पात्र (भगवान का अभिषेक/तिरुमज्जन करवाने हेतु एवं तत्पश्चात भगवान को भोग आदि के समय)  
  5. शुद्धोदक पात्र (विभिन्न उपचारों के बीच उद्धरिणी (कलछी) को शुद्ध करने के लिए)
  6. प्रतिग्रह पात्र (उपचार समर्पित करने के पश्चात जल डालने का पात्र)
  7. अभिषेक पात्र (जिस पात्र में शालग्राम को पधराकर मज्जन कराते हैं)
  8. तुलसी, पुष्प आदि
  9. आचार्य आराधन के लिए अर्घ्य पात्र

इसके पश्चात शोषण, दाहन, प्लावन, सुरभिमुद्रा एवं अस्त्र मन्त्र से पात्रों की शुद्धि करें|

अपने बायें हाथ से दाहिने हाथ पर लिखें: ‘यं’ एवं “यं वायवे नमः शोषयामि” उच्चारित कर पूजन सामग्रियों की ओर दाहिने हाथ को दिखाएँ|

अपने बायें हाथ से दाहिने हाथ पर लिखें: ‘रं’ एवं “रं अग्नये नमः दाहयामि” उच्चारित कर पूजन सामग्रियों की ओर दाहिने हाथ को दिखाएँ|

अपने दाहिने हाथ से बाँयें हाथ पर लिखें: ‘वं’ एवं “वं अमृताय नमः प्लावयामि” उच्चारित कर पूजन सामग्रियों की ओर बाएं हाथ को दिखाएँ|

अब हाथों की अँगुलियों को सुरभि मुद्रा में जोड़कर प्रत्येक पात्रों की दिखाएँ एवं उच्चारित करें: “ओं सुं सुरभिमुद्रायै नमः”। (बाएं हाथ की छोटी अंगुली को दाहिने हाथ के अनामिका अंगुली से जोड़े, दाहिने छोटी अंगुली को बाएं अनामिका अंगुली से; दाहिने तर्जनी को बाएं मध्यमा से एवं बाएं तर्जनी को दाहिने मध्यमा से; एवं दोनों अंगूठों को|)

अब तीन बार अपने दाहिने हस्त के अंगूठे एवं अनामिका अंगुली से चुटकी बजाते हुए, घड़ी की दिशा में घुमाते हुए बोलें “वीर्याय अस्त्राय फट्”।

अब पूर्णकुम्भ को दाहिने हाथ से ढककर 7 बार उच्चारण करें “श्रीमते नारायणाय नमः

अब पूर्णकुम्भ से प्रत्येक पात्र में “ज्ञानाय हृदयाय नमः” उच्चारण करते हुए जल भर लें|

प्रत्येक पात्र के ऊपर दाहिने हस्त को रखकर निम्न मन्त्रों को पढ़ें:

ओं नमो नारायणाय अर्घ्य परिकल्पयामि।

ओं नमो नारायणाय पाद्यं परिकल्पयामि।

ओं नमो नारायणाय आचमनीयं परिकल्पयामि।

ओं नमो नारायणाय स्नानीयं परिकल्पयामि।

ओं नमो नारायणाय सर्वार्थतोयं परिकल्पयामि।

अब उद्धारिणी में जल लेकर, तुलसी पत्र डालकर, दाहिने हस्त से ढककर एवं अपनी वक्षस्थल की उंचाई तक लाकर बोलें:

श्रीं श्रीयै नमः, भूं भूम्यै नमः, नीं नीलाय नमः, श्रीमते नारायणाय नमः (7 बार) विं विरजायै नमः (4 बार) विं विरजातोयम् आवाहयामि

एवं सभी पात्रों के ऊपर जल छिड़क दें और अपने मस्तक पर भी प्रोक्षण करें । 

सर्वप्रथम अपने आचार्य, रामानुज स्वामीजी, आल्वार एवं विष्वक्सेन नित्य सूरी आदियों का संक्षिप्त आराधन करते हैं| उसके पश्चात, आचार्य की आज्ञा लेकर भगवान का आराधन प्रारम्भ करते हैं| भोज्यासन आदि भगवान के भोग लगने के बाद ही करते हैं|

अब अपने आचार्य के चित्रपट या आचार्य पादुका (तिरुवडि) की सेवा करें ।

आचार्य सेवा विधि 

आचार्य सेवा के लिये दो अलग पात्र रखे – आचार्याराधना पात्र जिस में अर्घ्य आदि के लिये जल हो और एक प्रतिग्रह पात्र ।

अस्मद् आचार्य का तनियन् बोले । पश्चात् यह चार वाक्य बोले – अस्मद्गुरुभ्यो नमः ,अस्मद् परमगुरुभ्यो नमः , अस्मद् सर्वगुरुभ्यो नमः, श्रीमते रामानुजाय नमः ।

अर्घ्य, पाद्य, आचमन , स्नान कराते समय आचार्याराधना पात्र से जल लेकर श्री आचार्य हस्त,चरण, मुख और दिव्यमंगल विग्रह को दिखाकर प्रतिग्रह पात्र मे डालें ।

यह बोलते हुए सब सेवा करे (प्रत्यक्ष न कर पाये तो मन से ध्यान करे) अस्मद्गुरुभ्यो नमः अर्घ्यम् ,पाद्यम्, आचमनीयम्, स्नानम्, वस्त्रायुग्मम्, यज्ञोपवीतम् , व्दादश उर्ध्वपुण्ड्रम् , तुलसी काष्ठ माला, कमलमणी माला समर्पयामि ।  

ध्यान

“सर्व-दिव्य-मंगल-विग्रहाय समस्त परिवाराय श्रीमते नारायणाय नमः| आचार्यस्य अमृतहस्तेन भगवद् आराधना-अभिमुखो भवेयम्” (आचार्यन तिरुकैगलाल एम्पेरुमान तिरुवाराधनम् कन्डु अरुल वेंडुम्)

सव्यम् पादम् प्रसार्य श्रित दुरितहरं दक्षिणं कुञ्चयित्वा
जानुन्याधाय सव्येतरमितरभुजं नागभोगे निधाय |
पश्चात्बाहुद्वयेन प्रतिभटशमने धारयन् शङ्खचक्रे
देवीभूषादिजुष्टो जनयतु जगतां शर्म वैकुण्ठनाथ: ||

तुलसी पुष्प से मन्त्रासन समर्पित करें: “श्रीमते नारायणाय नमः मन्त्रासनं प्रतिगृह्णीष्व

अर्घ्य समर्पित करें: “श्रीमते नारायणाय नमः अर्घ्यं प्रतिगृह्णीष्व”| फिर उद्धरिणी को प्रतिग्रह पात्र में डुबाकर शुद्ध करें|

२ बार पाद्य समर्पित करें: “श्रीमते नारायणाय नमः पाद्यं प्रतिगृह्णीष्व”| प्रत्येक बार उद्धरिणी को शुद्धोदक में डुबाकर शुद्ध करें|

3 बार आचमन समर्पित करें: “श्रीमते नारायणाय नमः आचमनीयं प्रतिगृह्णीष्व”| प्रत्येक बार उद्धरिणी को शुद्धोदक पात्र में डुबाकर शुद्ध करें|

अब ‘प्लोत वस्त्र’ लेकर एक कोने से भगवान के ओष्ठ एवं हस्त एवं दूसरी ओर से श्रीपादों को पोंछने का भाव करें: “श्रीमते नारायणाय नमः प्लोतवस्त्रं’ प्रतिगृह्णीष्व”|

अब प्रणाम निवेदित करें: “सर्व-दिव्य-मंगल-विग्रहाय समस्त परिवाराय श्रीमते नारायणाय नमः|

(‘प्रतिगृह्णीष्व’ के स्थान पर ‘समर्पयामि’ कहना भी प्रचलित हैं| किन्तु ‘समर्पयामि’ कहने से स्व-कर्तृत्व रूप अहंकार का बोध होता| “मैं समर्पित कर रहा हूँ” कहने के स्थान पर “आप अपनी कृपा से स्वीकार कीजिये”, ऐसा कहना हमारे पारतंत्र्य स्वरुप के अधिक अनुकूल है| श्री वरवरमुनि स्वामी ने ‘जीयरपड़ी तिरु-आराधन क्रमम्’ में ऐसा ही आदेश किया है|)

स्नानासन

तुलसी पत्र लेकर स्नानासन निवेदित करें एवं श्रीमज्जन के पात्र में भगवान को पधारायें|

सर्व-दिव्य-मंगल-विग्रहाय समस्त परिवाराय श्रीमते नारायणाय नमः| स्नानासनं प्रतिगृह्णीष्व |

अब दो बार तुलसी पत्र लेकर भगवान के दांत धुलाने एवं जिह्वा साफ करने का भाव करें:

श्रीमते नारायणाय नमः| दन्तधावनं प्रतिगृह्णीष्व |

श्रीमते नारायणाय नमः| जिह्वानिर्लेखनं प्रतिगृह्णीष्व |”

अब सर्वार्थ-तोय पात्र से जल लेकर भगवान कुल्ली कराने का भाव एवं हाथ धुलाने का भाव करें|

समस्त परिवार समेताय सर्वदिव्यमङ्गल विग्रहाय श्रीमते नारायणाय नमः आचार्यस्य अमृत हस्तेन गण्डूषणं, मुखप्रक्षालनं, तोय-हरिद्रा-अमलक-तैल-अभ्यज्ज्ञनमपि स्वीकुरुष्व” ।

उपर का वाक्य बोलते हुए श्रीभगवान को सर्वार्थतोयम् पात्र से अर्घ्य और आचमन कराके मुख शोधन कराये पश्चात् तैल लेपन कर के बेसन आदि चूर्ण से मालिश करे (भावना करे ) ।

 पुनः अर्घ्य-पाद्य-आचमन निवेदित करके अभिषेक प्रारम्भ करें| जल, शुद्ध देशी गौ का दुग्ध,  शुद्ध देशी गौ का दही,  शुद्ध देशी गौ का घी, शहद, गुड़ का पानी आदि से एक-एक करके अभिषेक कर सकते हैं|

मज्जन समाप्त होने के पश्चात भगवान को वापस अपने स्थान पर लायें| सभी पात्रों के जल को सर्वार्थ-तोय पात्र में डाल दें एवं पूर्णकुम्भ से नया जल सभी पात्रों में भर लें| अब भगवान का अलंकार करें|

तुलसी पत्र लेकर स्नानासन निवेदित करें एवं श्रीमज्जन के पात्र में भगवान को पधारायें|

“सर्व-दिव्य-मंगल-विग्रहाय समस्त परिवाराय श्रीमते नारायणाय नमः| स्नानासनं प्रतिगृह्णीष्व |”

अब दो बार तुलसी पत्र लेकर भगवान के दांत धुलाने एवं जिह्वा धुलाने का भाव करें:

मज्जन समाप्त होने के पश्चात भगवान को वापस अपने स्थान पर लायें| सभी पात्रों के जल को सर्वार्थ-तोय पात्र में डाल दें एवं पूर्णकुम्भ से नया जल सभी पात्रों में भर लें| अब भगवान का अलंकार करें|

अलङ्कारासन

भगवान के चरणों में तुलसी पत्र निवेदित करें: “सर्व-दिव्य-मंगल-विग्रहाय समस्त परिवाराय श्रीमते नारायणाय नमः| अलङ्कारासनं स्वीकुरुष्व

भगवान को वस्त्र निवेदित करें: “श्रीमते नारायणाय नमः| वस्त्रं प्रतिगृह्णीष्व

अलंकार पूर्ण होने पर स्तोत्र-रत्न का यह श्लोक निवेदित करें:

स्फुरत्किरीटाङ्गदहारकण्ठिकामणीन्द्रकाञ्चीगुणनूपुरादिभिः ।

रथाङ्गशङ्खासिगदाधर्नुवरैर्लसत्तुलस्या वनमालयोज्ज्वलम् ॥ ३६।

भगवान को उर्ध्वपुण्ड्र निवेदित करें: “श्रीमते नारायणाय नमः| उर्ध्वपुण्ड्रं प्रतिगृह्णीष्व

वेद मन्त्र: “गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥ श्री सूक्त 9॥

यह नीचे का वाक्य और पासुर बोलते हुए श्री भगवान कि यह सब सेवा क्रम से करें ।

समस्त परिवार समेताय सर्वदिव्यमङ्गल विग्रहाय श्रीमते नारायणाय नमः आचार्यस्य अमृत हस्तेन केश शोषणम्,शीखा बन्धनम्, वस्त्रा युग्मम्, यज्ञोपवित द्वयम्, कस्तुरी तिलक उर्ध्व पुण्ड्रम् ,दिव्य श्रीचन्दनम् , आभरणानि, पुष्पमालिकानी स्वीकुरुष्व

(ध्यान रहे श्री भगवान को दो वस्त्र धारण करायें – एक धोती और एक उत्तरीय वस्त्र ।)

पुष्प समर्पित करें| पेरियाल्वार तिरुमोली के 2.7 दशक का अनुसन्धान कर सकते हैं| इस दशक का प्रथम पासूर इस प्रकार है:

आनिरै मेय्क्क नीपोदि अरुमरुन्दावदरियाय्*

कानहमेल्लाम् तिरिन्द उन्करियतिरुमेनिवाड*

पानैयिल् पालैप्परुहिप्पत्तादारेल्लाम् शिरिप्प*

तेनिलिनियपिराने ! शेण्पहप्पूच्चूट्टवाराय् ।।२.७.१।।

संस्कृत अनुवाद:

गास्संचारयितुं प्रयासि, नहि वेत्स्यात्मप्रभावं हरे !

कान्तारे बहु संचरन् बत ! वपुर्लानिं समासीदसि ।

भाण्डे चूषसि दुग्धमित्यहह भो मित्रेतरैर्हस्यसे

पीयूषादपि भोग्य ! चम्पकसुमं वोढुं समागच्छतात् ।।२.७.१।।

हिन्दी अनुवाद:

हे कृष्ण ! अपने दिव्य मंगल विग्रह के सौकुमार्य को तुम बिलकुल नहीं जानते हुए गाय चराने के लिए अरण्य जाते हो । वहां पर इधर-उधर चलने फिरने से परम शोभन तुम्हारा दिव्य विग्रह फीका पड़ जाएगा। घर पर रहने पर तो, तुम्हारे दुश्मन लोग कहते हैं कि यह कृष्ण हमारे यहां घडों में रखे हुए कच्चे दूधको पी डालता है; परंतु उनको चाहे जो कहने दो; मैं उसकी परवाह नहीं करती हूं, मेरे लिए तो तुम्हारी सभी चेष्टाएं परम भोग्य होती हैं। हे मधुसे भी बढ़कर भोग्य, प्रभो कृष्ण ! तुम्हारे सिरपर चंपक पुष्प को पहिनाती हूं। इसलिए तुम यहां पर आजा ।।…. ..(२.७.१)

इस दशक का तात्पर्य संग्राहक पद्य यह है —

स्नातं संपुष्टकेशं सुतमथ कृसुमालंक्रियाढ्यं

चिकीर्षुः माता चाम्पेयमल्लीदमनकसुरपुन्नागमागध्यभिख्यम् ।

सज्जीकृत्य प्रसूनप्रचयमभिनव, वत्स ! पुष्पाणि धर्तुं द्रागायाहीति

याञ्चामकृत, वदति त‌द्विष्णुचित्तेस्मि भक्तः ।।

हिन्दी अनुवाद: पूर्वदशक में मीठी वचनों से गाय चराने उत्सुक बालकृष्ण को वनप्रयाण से रोककर घर में ठहराने के बाद, नानाविध सुगंधि पुष्पों से उसका श्रृंगार कर देखने इच्छुक यशोदाजी ने चंपक, मल्ली, दमन, सुरपुन्नाग, मालती इत्यादि अनेक तभी खिले हुए सुगंधित पुष्पों को लाकर श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि, “हे कृष्णकिशोर ! इन पुष्पों का धारण करने के लिए यहां आ जा ।” इस अर्थके वर्णन को दस दिव्य गाथाओं से करनेवाले श्रीविष्णुचित्तसूरि का मैं भक्त हूं ।

अर्घ्य, पाद्य, आचमन निवेदित करें|

धूप अर्पित करें|

वेद मन्त्र: ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्वाहू राजन्य: कृत: । उरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भयां शूद्रो अजायत ।। ११ ।।

दीप अर्पित करें:

श्रीभगवान के बाद नित्यसूरि पश्चात् आळ्वार् पश्चात् आचार्यों (स्वाचार्य तक) को भी दीप आरती करिए । 

(पुष्प और दीप पर पहले श्रीमते नारायणाय नमः बोलते हुये सर्वार्थतोयम् पात्र के जल से प्रोक्षण करें )

वेद मन्त्र: चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्यो अजायत । श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ।। १२ ।।

श्रीभगवान की द्वादश अर्चना करें

1.श्री केशवाय नमः। 2. श्री नारायणाय नमः। 

3.श्री माधवाय नमः। 4. श्री गोविन्दाय नमः।

5. श्री विष्णवे नमः। 6. श्री मधुसूदनाय नमः।

7. श्री त्रिविक्रमाय नमः। 8. श्री वामनाय नमः।

9. श्री श्रीधराय नमः। 10. श्री हृषीकेशाय नमः। 

11.श्री पद्मनाभाय नमः। 12. श्री दामोदराय नमः। 

श्रीलक्ष्मीजी की द्वादश अर्चना करें  

1 श्रियै नमः। 7 वरारोहायै नमः। 

2 अमृतोद्भवायै नमः। 8 श्री हरिवल्लभायै नमः। 

3 कमलायै नमः। 9 श्री शाङ्गिण्यै नमः। 

4 चंद्रसौंदर्यै नमः। 10 श्री देवदेविकायै नमः। 

5 विष्णुपत्न्यै नमः। 11 श्री लोकसुन्दर्यै नमः। 

6 वैष्णव्यै नमः। 12 श्री महालक्ष्म्यै नमः। 

मन्त्र-पुष्पं

हरिः ओं। अ॒ग्निमी॑ळे पुरोहितं आदि वेद मन्त्र

इच्छामो हि महाबाहुं रघुवीरं महाबलम्। गजेन महताऽयान्तं रामं छत्रावृताननम् ॥ (श्री रामायण २.२.२२)

तं दृष्ट्वा शत्रुहन्तारं महर्षीणां सुखावहम्। बभूव हृष्टा वैदेही भर्तारं परिषस्वजे ॥ (श्री रामायण ३.३०.३९)

तासामाविरभूच्छौरिः स्मयमानमुखाम्बुजः। पीताम्बरधरः स्रग्वी साक्षान्मन्मथमन्मथः ॥ (श्रीमद्भागवतम् १०.३२.०२)

वैकुण्ठेतु परेलोके श्रिया सार्धं जगत्पतिः। आस्ते विष्णुरचिंत्यात्मा भक्तैर्भागवतैस्सह ॥ (लिंग पुराण)

एष नारायण श्रीमान् क्षीरार्णवनिकेतनः। नाग पर्यङ्कमुत्सृज्य ह्यागतो मधुरां पुरीम् ॥ (कुम्भकोनम महाभारत वन पर्व, ८६.२४/ हरिवंश ११३.६२)

शैन्नाल् कुडैयाम् इरुन्दाल् शिङ्गाशनमाम्

निन्नाल् मरवड़ियाम् नीळ कडलुळ् 

ऐन्टुम् पुणैयाम् मणि विळक्वाम्

पूम् पट्टाम् पुल्गुम् अणैयाम्  तिरुमाकरवु (२ बार)

कदा पुनः शङ्खरथाङ्गकल्पकध्वजारविन्दाङ्कुशवज्रलाञ्छनम्।

त्रिविक्रम त्वच्चरणाम्बुजद्वयं मदीयमूर्द्धानमलङ्करिष्यति ।। (स्तोत्र रत्न. २९)

अब भगवान के द्वादश नामों से एवं श्री देवी के द्वादश नामों से पुष्प अर्चना करें

भोज्यासनम्

भगवान के चरणों में तुलसी पत्र निवेदित करें: “सर्व-दिव्य-मंगल-विग्रहाय समस्त परिवाराय श्रीमते नारायणाय नमः| भोज्यासनं स्वीकुरुष्व

अर्घ्य पाद्य आचमन निवेदित करें

भोग की थाली सामने रख मूल मन्त्र उच्चारण करते हुए उद्धरिणी से जल लेकर थाली के चारो ओर जल गिराएँ| द्वय मन्त्र पढ़ते हुए उद्धरिणी से जल लेकर भोग का प्रोक्षण करें अर्थात जल छिड़कें|

भोग के ऊपर तुलसी पत्र रखकर भगवान को ग्रास मुद्रा के द्वारा भोग खिलाने का भाव करें|

(दाहिने हाथ के अंगूठे को मध्यमा एवं अनामिका से जोड़ कर ग्रास मुद्रा बनता है|)

पञ्च-कौर खिलाएं: ॐ प्राणाय स्वाहा, ॐ अपानाय स्वाहा, ॐ व्यानाय स्वाहा, ॐ उदानाय स्वाहा, ॐ समानाय स्वाहा ।

“समस्त परिवार समेताय सर्वदिव्यमङ्गल विग्रहाय श्रीमते नारायणाय नमः आचार्यस्य अमृत हस्तेन महा नैवेद्यम् ताम्बूल पर्यन्तम् प्रतिगृह्णीष्वा” ऐसा बोलते हुए भोग ताम्बूल आदि निवेदन करें ।

वेद मन्त्र: ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौ: समवर्तत ।पद्भयां भूमिर्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन् ।।

* कूडारै वेल्लुम् क्षीर, गोविन्दा! * उन्दन्नै

पाडिप् परै. कोण्डु याम् पेरु. सम्मानम् *

नाडु पुगळु. म् परिसिनाल् नत्रा. ग *

सूडगमे तोळ् वळैये तोडे सेवि पूवे **

पाडगमे एत्र. नैय, पल्कलनुम् याम् अणिवोम् *

आडै उडुप्पोम् अदन् पिन्ने पार्. सोरु. *

मूड नेय् पेय्दु मुळ. मैं वळि. वार *

कूडि इरुन्दु कुळिन्दैलोर् एम्पावाय्   (तिरुपावै २७)

बीच बीच में पानीय पात्र से जल अर्पित करते रहें| (मज्जन के बाद स्नानीय पात्र ही पानीय पात्र बन जाता है|)

हस्त-मुख-पाद-प्रक्षालन-आचमनीयानि प्रतिगृह्णीष्व

अब ताम्बूल समर्पित करें

सेवा काल

सेवा काल में हम द्रविड़ प्रबन्धों जैसे तिरुपल्लाण्डु, तिरुप्पावै, तिरुपल्लियेचि, रामानुज नुट्रन्दादि आदि| द्रविड़ वेदों के अनध्ययन काल में उपदेश रत्नमाला आदि प्रबन्धों का पाठ करते हैं|

जिन श्री वैष्णवों को द्रविड़ प्रबन्धों का ज्ञान न हो, वो निम्न स्तोत्रों का पाठ अवश्य करें: वरदवल्लभा स्तोत्र, आलवन्दार स्तोत्र (स्तोत्र रत्न) एवं यतिराज विंशति|

स्तोत्र माला पुस्तक:

द्राविड नित्यानुसन्धान :

तिरुप्पावै संस्कृत

पुनर्मंत्रासन

भगवान के चरणों में तुलसी पत्र निवेदित करें: “सर्व-दिव्य-मंगल-विग्रहाय समस्त परिवाराय श्रीमते नारायणाय नमः| पुनर्मंत्रासनं प्रतिगृह्णीष्व

अर्घ्य पाद्य आचमन निवेदित करें

कर्पूर से नीराजन करते हुए इन मन्त्रों का अनुसन्धान करें:

मंगलाचरण

अब भगवान के भोग को आलवारों एवं आचार्यों को निवेदित करें|

शाट्रुमुरै

आराधना के अन्त भाग को शाट्रुमुरै कहते हैं| इसमें हम आलवारों एवं आचार्यों के प्रबन्धों के कुछ अंश पढ़ते हैं एवं गुरु परम्परा का मंगल गाते हैं| प्रारम्भ में गोदाम्बा जी के तिरुपावै के अन्तिम दो सूक्त एवं विष्णुचित्त आल्वार के तिरुपल्लाण्डु के प्रारम्भिक दो सूक्तों को पढ़ते हैं| इनके साथ अन्य प्रबन्धों के शाट्रुमुरै सूक्त भी पढ़ सकते हैं| सेवा काल में जिन प्रबन्धों का अनुसन्धान किया गया, अब उनका शाट्रुमुरै सूक्त अंश गाना आवश्यक है|

*सिट्रञ् सिरु. काले, वन्दुन्नैच् सेवित्तु ,  उन् पोट्रामरै अडिये पोटुम् पोरुळ् केळाय् ,

*पेट्रम् मेय्तुण्णुम् कुलत्तिल पिरन्दु ,  नी कुट्रेवल एङ्गळैक् कोळ्ळामल पोगादु

*इट्रैप् परै. कोळ्वान्, अनु. काण् गोविन्दा ! * एट्रैकुम् एळ्. एल्. पिर. विक्कुम् *

उन्दन्नोडु उट्रोमे आवोम् उनके नाम् आग्नेय्वोम्*

 मट्टै नम् कामङ्गळ् माट्रेलोर् एम्पावाय् | (तिरुपावै . 29)

*वङ्गक् कडल् कडैन्द, मादवनैक् केसवनै *

तिङ्गळ् तिरुमुगत्तुच् सेयिळे. यार् सेन्निरैञ्जि *

अङ्गप्परै. कोण्डवाट्रे * अणि पुदुवै पैङ्गमलत् तण तेरियल् बट्टर् पिरान् कोदै सोन्न *

सङ्ग तमिळ. मालै, मुप्पदुम् तप्पामे *

इङ्गिप्परिसुरेप्पार् ईरिरण्डु माल् वरैत् तोळ् *

सेङ्गण तिरुमुगत्तुच् सेल्वत् तिरुमालाल् *

एङ्गुम् तिरुवरुळ पेटु इन्बुरु. वर् एम्पावाय्। (तिरुपावै . 30)

सर्वदेशदिशाकालेष्वव्याहतपराक्रमः ।

रामानुजार्यदिव्याज्ञा वर्धतामभिवर्धताम् ॥

रामानुजार्यदिव्याज्ञा प्रतिवासरमुज्ज्वला ।

दिगन्तव्यापिनी भूयात्सा हि लोकहितैषिणी ॥

श्रीमन् श्रीरङ्गश्रियमनुपद्रवामनुदिनं संवर्धय ।

श्रीमन् श्रीरङ्गश्रियमनुपद्रवामनुदिनं संवर्धय ।

नमः श्रीशैलनाथाय कुन्तीनगरजन्मने । प्रसादलब्धपरमप्राप्यकैड्‌कर्यशालिने ।। (श्री शैलेश स्वामी)

श्रीशैलेशदयापात्रं धीभक्त्यादिगुणार्णवम् ।

यतीन्द्रप्रवणं वन्दे रम्यजामातरं मुनिम् ॥1॥ (वरवर मुनि स्वामी)

लक्ष्मीनाथसमारम्भां नाथयामुनमध्यमाम् ।

अस्मदाचार्यपर्यन्तां वन्दे गुरुपरम्पराम् ॥2॥

यो नित्यमच्युतपदाम्बुजयुग्मरुक्म व्यामोहतस्तदितराणि तृणाय मेने।

अस्मद्गुरोर्भगवतोऽस्य दयैकसिन्धोः रामानुजस्य चरणौ शरणं प्रपद्ये ॥3॥ (रामानुज स्वामी’)

माता पिता युवतयस्तनया विभूतिः

सर्वं यदेव नियमेन मदन्वयानाम् ।

आद्यस्य नः कुलपतेर्बकुलाभिरामं

श्रीमत्तदङ्घ्रियुगलं प्रणमामि मूर्ध्ना ॥4॥ (शठकोप आल्वार)

भूतं सरश्च महदाह्वय भट्टनाथ

श्रीभक्तिसारकुलशेखरयोगिवाहान् ।

भक्ताङ्घ्रिरेणुपरकालयतीन्द्रमिश्रान्

श्रीमत्पराङ्कुशमुनिं प्रणतोऽस्मि नित्यम् ॥5॥

गुरुमुखमनधीत्य प्राह वेदानशेषान्

नरपतिपरिक्लृप्तं शुल्कमादातुकाम: ।

श्वशुरममरवन्द्यं रङ्गनाथस्य साक्षात्

द्विजकुलतिलकं तं विष्णुचित्तं नमामि ॥6॥ (विष्णुचित्त आल्वार)

जयति यतिराज फणिराज अवतार मणे प्रबल पाषण्ड तमो हरण! भानो विजयी भव! विजयी भव! विजयी भव!

Appendix

वरदवल्लाभा स्तोत्र :

आलवन्दार स्तोत्र (स्तोत्र-रत्न)

यतिराज विंशति

रंगनाथ स्तोत्र

पंचायुध स्तोत्र

पूर्व दिनचर्या-उत्तर दिनचर्या

वेंकटेश स्तोत्र

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Author: ramanujramprapnna

studying Ramanuj school of Vishishtadvait vedant

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