वेद कहते हैं: अष्टौ प्रकृतय: षोडश विकारा: ।
8 प्रकृति अर्थात मूल हैं एवं 16 विकार हैं।
8 प्रकृति हैं: मूल प्रकृति, महत, अहंकार और 5 तन्मात्र।
16 विकार हैं: 11 इन्द्रियाँ और 5 भूत। ये 16 विकार ही वर्तमान में दृष्टिगोचर होते हैं। अन्य 8 प्रकृति होने के कारण परिवर्तित हो जाते हैं और वर्तमान में उपलब्ध नहीं होते। इस प्रकार मिश्र सत्त्व सृष्टि में 24 तत्त्व हैं।
तन्मात्र भूतों के पूर्व की अवस्था हैं| जैसे दूध और दही के मध्य की अवस्था होती है, वैसा ही तन्मात्र होता है|

तामस अहंकार से पांच भूतों की उत्पत्ति के विषय में 2 योजन/तात्पर्य भेद हैं।
1st yojana is तन्मात्र से अगले तन्मात्र की उत्पत्ति।
2nd yojana is भूत से अगले तन्मात्र की उत्पत्ति
प्रथम तात्पर्य

- तामस अहंकार से शब्द तन्मात्र की उत्पत्ति होती है।
- शब्द तन्मात्र से आकाश नामक भूत की उत्पत्ति एवं स्पर्श तन्मात्र की उत्पत्ति होती है।
- स्पर्श तन्मात्र से वायु नामक भूत एवं रूप तन्मात्र की उत्पत्ति होती है।
- रूप तन्मात्र से तेज/अग्नि नामक भूत की एवं रस तन्मात्र की उत्पत्ति होती है।
- रस तन्मात्र से जल / आप: नामक भूत की एवं गन्ध तन्मात्र की उत्पत्ति होती है।
- गन्ध तन्मात्र से पृथ्वी नामक भूत की उत्पत्ति होती है।
आकाश के कारण तन्मात्र को शब्द तन्मात्र इस कारण कहा गया क्योंकि उसका विशेष गुण शब्द है| इसी प्रकार अन्य तन्मात्रों का भी नामकरण समझना चाहिए| पृथ्वी के कारण तन्मात्र को गन्ध तन्मात्र कहा गया क्योंकि उसका प्रधान गुण गन्ध हैं|
द्वितीय तात्पर्य

- तामस अहंकार से शब्द तन्मात्र की उत्पत्ति है।
- शब्द तन्मात्र से आकाश नामक भूत की।
- आकाश से स्पर्श तन्मात्र की उत्पत्ति होती है।
- स्पर्श तन्मात्र से वायु नामक भूत की।
- वायु से रूप तन्मात्र।
- रूप तन्मात्र से तेज/अग्नि नामक भूत।
- अग्नि से रस तन्मात्र।
- रस तन्मात्र से जल नामक भूत।
- जल से गन्ध तन्मात्र एवं गन्ध तन्मात्र से पृथ्वी नामक भूत।
दोनों ही तात्पर्य अपने स्थान पर उचित हैं क्योंकि भूतों की तन्मात्र से उत्पत्ति में पूर्व के तन्मात्र का आवरण होता है एवं पूर्व के भूत सहकारी होते हैं| जैसे शब्द तन्मात्र से स्पर्श तन्मात्र की उत्पत्ति को देखते हैं। शब्द तन्मात्र से आकाश भूत के सहयोग से एवं तामस अहंकार के आवरण सहित स्पर्श तन्मात्र की उत्पत्ति होती है। स्पर्श तन्मात्र शब्द तन्मात्र के आवरण सहित और वायु भूत के सहयोग से रूप तन्मात्र की उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार आगे भी समझना चाहिए|


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