पदार्थ विभाग भाग 1: प्रकृति से महत एवं महत से अहंकार एवं सात्त्विक अहंकार से 11 इन्द्रियों की उत्पत्ति

पदार्थ शब्द का अर्थ क्या है? पदस्य अर्थ: पदार्थ:। इस प्रकार पदार्थ अर्थात तत्त्व।

पदार्थ के दो प्रकार हैं: द्रव्य और अद्रव्य।

अद्रव्य की चर्चा बाद में करते हैं। द्रव्य वो हैं जो गुण या क्रिया का आश्रय हैं। जो अवस्थान्तर को प्राप्त होते हैं।

द्रव्य के दो प्रकार हैं: चित और अचित। चित अर्थात चैतन्य का आश्रय द्रव्य। जिसमें चैतन्य अर्थात ज्ञान हो। अचित अर्थात चैतन्य का अनाश्रय द्रव्य। जिसमें चैतन्य अर्थात ज्ञान न हो।

चित दो प्रकार के हैं: जीवात्मा और परमात्मा।

अचित तीन प्रकार के हैं: प्रकृति (मिश्र सत्त्व), काल और शुद्ध-सत्त्व।
प्रकृति भगवान का लीला उपकरण है।

मिश्र सत्त्व कुल मिलाकर 24 तत्त्व हैं। बाकि 23 तत्त्व प्रकृति के ही विकार हैं। प्रकृति अर्थात मूल/ उपादान कारण। इसी को अविद्या और माया भी कहते हैं। मूल प्रकृति तक सम सृष्टि है। सत्त्व, रजस एवं तमस समान मात्रा में होने के कारण अनुद्भूत होते हैं।

प्रकृति के बाद की सृष्टि विषम सृष्टि हैं। सत्त्व, रजस एवं तमस विषम मात्रा में होने के कारण उद्भूत अवस्था में होते हैं।

प्रकृति से उत्पन्न है महान, जो सात्त्विक, राजसिक एवं तामसिक 3 प्रकार का होता है। महान को ही बुद्धि भी कहते हैं। महान से उत्पन्न होता है सात्त्विक, राजसिक एवं तामसिक अहंकार। ये अहंकार तत्त्व ही अभिमान का हेतु है।

सात्त्विक अहंकार से उत्पन्न होते हैं 11 इन्द्रिय। ये दो प्रकार के हैं: ज्ञानेन्द्रिय एवं कर्मेन्द्रिय।

ज्ञानेन्द्रिय 6 हैं: 5 बाह्य ज्ञानेन्द्रिय एवं 1 आन्तर ज्ञानेन्द्रिय अर्थात मन या अंतःकरण। 5 बाह्य ज्ञानेन्द्रिय हैं: घ्राण (सूंघने का इन्द्रिय), रसन (स्वाद का इन्द्रिय), चक्षु (देखने का इन्द्रिय), त्वक् (स्पर्श का इन्द्रिय), श्रोत्र (श्रवण का इन्द्रिय)। ये क्रमशः गन्ध, रस, रूप, स्पर्श एवं शब्द के ग्राहक हैं। (इन्द्रिय अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं, इन्हें शरीर के अंग नासिका, आँख आदि न समझें| अपितु इन्द्रिय शरीर अंगों के अग्र भाग में रहते हैं)|

5 कर्मेन्द्रिय हैं: वाक्, पाणि, पाद, पायू (मूत्र विसर्जनका इन्द्रिय) एवं उपस्थ (मल विसर्जन का इन्द्रिय)। ये क्रमशः वचन, आदान, गमन, विसर्जन एवं आनन्द के हेतु हैं।

तामस अहंकार से 5 तन्मात्र एवं 5 भूत उत्पन्न होते हैं।

राजस अहंकार दोनों के कार्य में सहकारी होता है।

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Author: ramanujramprapnna

studying Ramanuj school of Vishishtadvait vedant

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