
अबतक भोग्य और भोगोपकरण पढ़ चुके हैं, अब भोगस्थान के विषय में पढ़ेंगे।
भोग्य: विषय
भोगोपकरण: इन्द्रिय
भोगस्थान: 14 लोक
अबतक हमने प्रकृति से पंच भूत एवं 11 इन्द्रिय की उत्पत्ति के विषय में पढ़ा है।
अब हम पंचीकरण के विषय में पढ़ेंगे। त्रिविध-करणम् भी प्राप्त होता है, किन्तु सर्व-शाखा-प्रत्यय न्याय एवं सकल-वेदान्त-प्रत्यय न्याय से उसका अर्थ भी पंचीकरणम् ही समझना चाहिए।
जैसे केवल बालू, पत्थर, सीमेंट, चूना आदि से घर नहीं बनता अपितु उन्हें मिलाना पड़ता है, वैसे ही जगत को नाम, रूप प्रदान करने के लिए भगवान भूतों का मिश्रण करते हैं। हमने पूर्व में प्रत्येक भूतों के गुणों के विषय में पढ़ा था। भूतों के परस्पर मिश्रण से उनके गुणों का भी आपस में मिश्रण हो जाता है।
आकाश का रंग नीला होता है। किन्तु हमने देखा है कि आकाश में एक ही गुण है शब्द (शब्द गुणकम् आकाशम्)। तो आकाश में रूप कैसे दिखाई पड़ता है? वस्तुतः आकाश का नीलापन उसमें मिश्रित पृथ्वी तत्त्व के कारण है।
छान्दोग्य उपनिषद: यदग्ने रोहित रूपं तेजसस्तद्रूपं यच्छुक्लं तदपं यत्कृष्णं तदन्नस्यापागादग्नेरग्नित्वं वाचार्मभं विकारो नामधेयं त्रैणि रूपानत्येव सत्यम॥
अग्नि में जो लाल रंग दिखाई देता है, वो तेजस का रूप है। जो श्वेत दिखाई देता है वो जल का और जो काला दिखाई पड़ता है वो पृथ्वी का।
इस प्रकार, तेजस में जल और पृथ्वी के मिश्रण का श्रुति प्रमाण है।
रेगिस्तान में जो जल दृष्टिगोचर होता है वो सत्य क्योंकि पंचीकरण के कारण पृथ्वी में जल का अंश विद्यमान है। शुक्तिका (sea shell) में जो रजत का आभास होता है, वो सत्य है क्योंकि पृथ्वी में तेजस का भी अंश है।
प्रक्रिया:
भगवान प्रत्येक भूत को आधा-आधा दो भाग में बांटते हैं। फिर आधे भाग को पुनः 4 भाग में बाँटते हैं। अर्थात, 1/8* 4 = 1/2।
अब एक भूत के 1/2 हिस्से में अन्य भूतों के 1/8 हिस्से को मिश्रित करते हैं। जैसे आकाश के आधे हिस्से में 1/8 वायु, 1/8 तेजस, 1/8 जल और 1/8 पृथ्वी।
1/2 + 1/8*4 = 1।
इस प्रकार प्रत्येक भूतों में अन्य भूतों का अल्प मात्रा में मिश्रण होता है। रेगिस्तान में जल की प्रतीति सत्य है किन्तु उससे प्यास बुझाने का व्यवहार नहीं हो पाता क्योंकि जल अत्यल्प मात्रा में है।
समष्टि एवं व्यष्टि सृष्टि
पंचीकरण के पश्चात भगवान अण्डों की सृष्टि करते हैं। प्रत्येक अण्डों में 14 लोकों की सृष्टि करते हैं। सबसे ऊपर है सत्यलोक एवं मध्य में भू लोक। भू लोक में 7 द्वीप एवं 7 समुद्र हैं। जम्बूद्वीप में लवण का समुद्र है। इसमें पृथ्वी है। एक द्वीप है श्वेतद्वीप जहाँ क्षीरसागर में भगवान में भगवान व्यूह रूप में आते हैं। वहाँ से नाभि कमल सत्यलोक तक जाता है एवं ब्रह्मा की सृष्टि होती है।
यहाँ तक की सृष्टि भगवान स्वयं करते हैं। इसे समष्टि सृष्टि कहते हैं। इसके बाद कि सृष्टि ब्रह्मा आदि के अन्तर्यामी होकर करते हैं। इसे व्यष्टि सृष्टि कहते हैं।

100 योजन विस्तार ब्रह्माण्ड के नीचे 7 आवरण है। पहला जल आवरण ब्रह्माण्ड से 10 गुणा बड़ा है। उसके बाद के अन्य आवरण पूर्व से 10 गुणा बड़े हैं। उनके नीचे अनन्त शेष अपने फण के ऊपर ब्रह्माण्ड को धारण करते हैं।
अनन्त शेष के अन्तर्यामी होकर संकर्षण प्रलय का कार्य करते हैं। उसके पूर्व रुद्र के अन्तर्यामी होकर। समष्टि प्रलय स्वयं भगवान वासुदेव करते हैं।

One thought on “पंचीकरण”