सत्-ख्याति : जगत सत्यत्वम्

श्रीमते रामानुजाय नमः।

यथार्थं सर्व विज्ञानम्। विशिष्टाद्वैत में सभी ज्ञान सत्य हैं|

शुक्तिका में रजत का आभास, रेगिस्तान में जल का आभास आदि भ्रम और स्वप्न में तात्कालिक पदार्थों का अनुभव भी सत्य है, असत्य नहीं। रज्जु में सर्प या खम्भे में पुरूष का भ्रम भी सत्य है।

इसकी व्याख्या यहाँ की गई है|

श्री वैष्णव सम्प्रदाय में ‘सत्-ख्याति’ का सिद्धान्त है। “यथार्थं सर्व विज्ञानम्”। अर्थात सभी ज्ञान सत्य हैं। जगत सम्पूर्ण रूप से सत्य है क्योंकि ज्ञान के सभी विषय से सत्य है।

बौद्ध मत में असत-ख्याति है अर्थात शून्यवाद। योगाचार बौद्धों में ज्ञान-ख्याति है, अर्थात जगत ज्ञान मात्र है। अद्वैत मत के ज्ञानवाद बौद्ध दर्शन के समान होने कारण उसे प्रच्छन्न बौद्ध भी कहते हैं। अद्वैत मत ‘अनिर्वचनीय ख्याति’ है। सत् अपि न, असत् अपि न। जगत का पारमार्थिक दृष्टि से अस्तित्व ही नहीं है, इसलिए सत् नहीं कह सकते। जगत का व्यवहार होता है, इस करण असत् भी नहीं कह सकते।

विशिष्टाद्वैत में ‘पंचीकरण’ के सिद्धान्त से भ्रम भी सत्य हैं। पंचीकरण

रेगिस्तान में जल का भ्रम होना भी सत्य है क्योंकि पृथ्वी तत्त्व में जल तत्त्व भी पंचीकरण की प्रक्रिया से विद्यमान है। पूर्व में हम पंचीकरण पढ़ चुके हैं। पंचीकरण

यदि जल विद्यमान है तो उसका व्यवहार क्यों नहीं होता?
क्योंकि जल अति अल्प मात्रा में विद्यमान है। इस कारण उससे प्यास नहीं बुझा सकते।

शुक्तिका (sea shell) में रजत का भ्रम होता है। शुक्तिका तो पृथ्वी तत्त्व है और रजत अग्नि/तेज तत्त्व। पृथ्वी में अग्नि तत्त्व होने के कारण ये भ्रम भी सत्य ही है। यदि सत्य है तो हमेशा ये भ्रम क्यों नहीं होता? प्रकाश के reflections आदि उपाधि के कारण ये भ्रम उत्पन्न हुआ है। उपाधि न होने से भ्रम नहीं होता|

रज्जु में सर्प का भ्रम

अँधेरे में रज्जु (रस्सी) में सर्प का भ्रम होता है। यहां समझने की बात यह है कि रज्जु में सर्प का ही भ्रम क्यों हुआ? हाथी का क्यों नहीं? अश्व का क्यों नहीं? और सर्प भी क्या रेंगता हुआ या फण उठाये भ्रम हुआ?

नहीं।

रज्जु में सर्प का भ्रम इस कारण क्योंकि रज्जु और सर्प के कुछ विशेषण एक समान हैं। दोनों एक आकार के हैं। अन्धकार की उपाधि के कारण रज्जु के वो विशेषण तो ग्रहण हुए जो सर्प के समान हैं किन्तु उन विशेषणों का ग्रहण नहीं हुआ जो सर्प से भिन्न है। इस कारण व्यक्ति को वहाँ सर्प का भ्रम हुआ।

किन्तु जो ज्ञान ग्रहण हुआ है, वो तो सत्य ही है। कुछ ज्ञान ग्रहण नहीं हुआ है (रज्जू का वह विशेषण जो सर्प से भिन्न है, वो ग्रहण नहीं हुआ), अर्थात अख्याति है। कुछ ज्ञान ग्रहण हुए हैं, जो सर्प के समान हैं, इस कारण सर्प का भ्रम हुआ है।

किन्तु ज्ञान का विषय तो सत्य ही है, असत्य नहीं।

उसी प्रकार रेगिस्तान में जल का ज्ञान भी भ्रम है किन्तु सत्य ज्ञान है। उपाधि के कारण केवल जल ही दिखा, पृथ्वी नहीं। किन्तु, जो दिखा वो सत्य ज्ञान ही है।

इस कारण भ्रम भी यथार्थ ज्ञान है किन्तु व्यवहारानुगुण नहीं है।

इसी प्रकार स्तम्भ (खम्भे) में पुरुष का भ्रम होना सत्य है क्योंकि खम्भा की आकृति पुरुष के समान है।

यदि असत्य ज्ञान ही होना था तो खम्भा में सर्प का भ्रम हो जाता, या रज्जु में पुरुष का भ्रम हो जाता। किन्तु ऐसा तो किसी को नहीं अनुभव होता|

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Author: ramanujramprapnna

studying Ramanuj school of Vishishtadvait vedant

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