ज्ञानस्वरूप एवं ज्ञानाश्रय जीवात्मा

जीवात्मा ज्ञानस्वरूप एवं ज्ञानाश्रय दोनों है। अर्थात जीवात्मा स्वयं ही ज्ञान है और ज्ञान का आश्रय भी है।

जीवात्मा स्वयं ही ज्ञान है अर्थात् स्वयं-प्रकाश है| इस ज्ञान को स्वरूप-ज्ञान कहते हैं।

जीवात्मा ज्ञान का आश्रय है, ऐसा कहने का अर्थ है कि ज्ञान जीवात्मा का गुण है। इसे ही धर्मभूत ज्ञान कहते हैं। भूत अर्थात आत्मा और धर्म अर्थात गुण। वो ज्ञान जो आत्मा के गुण रूप में आत्मा में विद्यमान है, वो धर्मभूत ज्ञान है।

अर्थात जीवात्मा स्वयं ही ज्ञान है और ज्ञाता भी है। ज्ञानात्मकत्व (ज्ञानस्वरुप होना) और ज्ञातृत्व (ज्ञाता होना), दोनों ही जीवात्मा के पास हैं।

सुसुप्ति अवस्था (गहरी निद्रा) में भी स्वरूप ज्ञान का बोध होता, इसकी चर्चा हम पूर्व में ही कर चुके हैं।

आनन्द स्वरूप

जीवात्मा को ज्ञानस्वरूप के साथ-साथ आनन्द स्वरूप भी कहा जाता है। इनमें कोई विरोधाभास नहीं है। आनन्द ज्ञान की ही विशेष अवस्था है। अनुकूल ज्ञान आनन्द है और प्रतिकूल ज्ञान दुख। जीवात्मा को स्वाभाविक रूप से सदैव सभी ज्ञान अनुकूल है, इस कारण उसे आनन्द-स्वरूप कहते हैं। अज्ञान के कारण ही कोई ज्ञान प्रतिकूल समझ आता है और दुःख-जनक होता है।

कोई व्यक्ति गहरी निद्रा में होता है तो उसके इन्द्रिय ज्ञान का किसी वस्तु से संयोग नहीं रहता है| फिर जब वह सो कर उठता है और कहता है कि मैं सुखपूर्वक सोया, तो यह सुख उसे कहाँ से प्राप्त हुआ? यदि ऐसा कहे कि सोकर उठने के बाद आनन्द आया (क्योंकि मस्तिष्क को आराम मिल गया) तो ऐसा कहना भी उचित नहीं है| क्योंकि कोई ऐसा नहीं कह सकता कि संगीत सुनने के बाद आनन्द आया| संगीत सुनना और आनन्द आना एक साथ ही हुआ है| इसी प्रकार, गहरी निद्रा के काल में जीवात्मा को आनन्द का अनुभव हो रहा था, किसी अन्य द्रव्य से संयोग के बिना ही| इस कारण यह सिद्ध होता है कि जीवात्मा ज्ञान-स्वरुप है| (आगे यह पढेंगे कि गहरी निद्रा में जीवात्मा ब्रह्म का अनुभव कर रहा होता है|)

स्वरुप ज्ञान और धर्मभूत ज्ञान, दोनों एक ही द्रव्य हैं, किन्तु एक-दुसरे से भिन्न हैं|

जिस प्रकार सूर्य स्वयं प्रभा का घनीभूत है और उसके किरण भी प्रभा हैं किन्तु दोनों में भेद है| प्रभा सूर्य पर आश्रित है| उसी प्रकार दोनों ही ज्ञान द्रव्य ही हैं किन्तु धर्म ज्ञान स्वरुप ज्ञान से ही निकलता है एवं उसी पर आश्रित होता है| जैसे किरणें भी अग्नि द्रव्य हैं और दीपक भी अग्नि द्रव्य है, उसी प्रकार दोनों ही ज्ञान द्रव्य ही हैं| दोनों भिन्न पदार्थ नहीं हैं

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Author: ramanujramprapnna

studying Ramanuj school of Vishishtadvait vedant

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