पराशर भट्ट स्वामीजी महाराज का श्री गोदा देवी और उनकी तिरुप्पावई से अद्भुद प्रेम था | उनका मानना है की यदि किसी ने अपने जीवनकाल में तिरुप्पावई का एक बार भी अध्ययन नहीं किया, तो उसका जीवन व्यर्थ है |
नीळा तुंगस्तनगिरितटीसुप्तमुद्बोध्य कृष्णम्
पारार्थ्यम् स्वम् श्रुतिशतशिरस्सिद्धम् अध्यापयन्ती ।
स्वोछिष्टायाम् स्रजिनिगळितम् या बलात्कृत्य भुंक्ते
गोदा तस्यै नम इदमिदम् भूय एवास्तु भूयः ॥
भावार्थ
मै बारम्बार श्री गोदा देवी को प्रणाम समर्पित करता हूँ, जिन्होंने श्री नीला देवी के पर्वतों के सदृश स्तनों पर सोते हुए श्री कृष्ण को जगाया, तथा शतशः वैदिक ग्रंथों के अनुसार उनके आगे अपने पूर्ण पारतंत्र्य को उद्घोषित किया, और जिन्होंने उन रंगनाथ भगवान् का बलात् भोग किया, जो उनकी(गोदा देवी) उच्छिष्ट पुष्प माला द्वारा बंधे हुए हैं |
गोदा देवी ने तीन कार्य किये-
१) नीळा तुंगस्तनगिरितटीसुप्तमुद्बोध्य कृष्णम् –
वे उन श्री कृष्ण को नींद से जगाती हैं, जो सबको नींद से जगाते हैं; जो ऐसे कमल का सृजन करते हैं जिसमें ब्रह्मा जी उत्पन्न होते हैं | महाप्रलय में जब समस्त जीवात्माएं जड़वत् स्थित थीं, तब श्री भगवान ने उनको शरीर व इन्द्रियाँ प्रदान की | गोदा महारानी ऐसे श्री भगवान को नींद से जगाती हैं | यह गोदा जी की महानता है| नीला देवी प्रभु को सुला देती हैं, और गोदा देवी प्रभु को जगा देती हैं |यह गोदा जी का वात्सल्य है |
पराशर भट्ट स्वामीजी महाराज को "श्रृंगार चक्रवर्ती" कहा गया है |
श्री भगवान क्यों सो रहे थे?
उन्होंने जीवात्माओं को समझा बुझाकर सही रास्ते पर लाने की कोशिश की, लेकिन कोई नहीं समझा | आखिरकार उन्हें कोई मिला जो शिष्य जैसा व्यवहार तो कर रहा था, लेकिन सच्चा शिष्य नहीं था (अर्जुन) | यह सब देखकर श्री भगवान सोने चले गए | नीला देवी श्याम वर्णा हैं, और श्री भगवान् भी श्याम वर्ण हैं | तो श्री भगवान ने सोने के लिए स्थान ढूंढा और नीला देवी के स्तनों में छुपकर सो गए |
२) पारार्थ्यम् स्वम् श्रुतिशतशिरस्सिद्धम् अध्यापयन्ती –
गोदा देवी ने श्री भगवान को अध्यययन कराया : ” आप अब तक सो रहे हैं, प्रभु! आपने किस हेतु ये अवतार लिया है?(आपको याद है?) ये जीवात्माएं हमारी संतान हैं | ये गलतियां तो करेंगे ही | क्या एक माँ अपनी संतान से नाराज़ हो सकती है? उठ जाइये, प्रभु! इनकी देखभाल कीजिये |”
जीवात्माओं की रक्षा करना श्री भगवान का स्वभाव है | ठीक उसी तरह जिस तरह सूर्य का स्वभाव प्रकाश देना है | यदि सूर्य प्रकाश देना बंद करदे, तो क्या वह सूर्य ही कहलायेगा? प्रभु का परार्थ्य हमारी रक्षा करना है | हमारा परार्थ्य उनकी सेवा करना है |
श्री भगवान ने समस्त विश्व को शिक्षाएं दी परन्तु श्री गोदा महारानी ने उन ही भगवान को शिक्षा दी! क्या? भगवान के जीवात्मा के प्रति और जीवात्मा के भगवान के प्रति पारार्थ्य की|
श्रुति शिरः – उपनिषद , जो की वेद के ४ अंगों में प्रधान हैं, इन्हें वेदों का शिर कहा जाता है |
यहाँ चर्चा परार्थ्य की हो रही है ( मै स्वयं का नहीं बल्कि श्री भगवान का हूँ और भगवान का सब कुछ भी भगवान का ही है ) | श्री भगवान का भी परार्थ है : पारतंत्रीयता | हम श्री भगवान के लिए हैं और श्री भगवान हमारे लिए हैं |
नदियाँ बहती है, हवा चलती है, तरुवर फल देते हैं, सूर्य प्रकाश देता है – सब दूसरों के लिए | ऐसा ही हमारे और श्री भगवान के साथ है |
मातृ तत्त्व का हमारे और पिता क सम्बन्ध में अहम योगदान होता है |
३) स्वोछिष्टायाम् स्रजिनिगळितम् या बलात्कृत्य भुंक्ते –
श्री गोदा देवी ने अपने प्रेम से प्लुत पुष्पमाला श्री भगवान को अर्पित की जिससे वे बंध गए, बिलकुल उस तरह जिस तरह एक मत्त हाथी एक रस्सी द्वारा बांधा जाता है | गोदा देवी ने अपना उच्छिष्ट अर्पित किया और श्री भगवान की कृपा को हठात् प्राप्त किया |
क्या प्रभु को उच्छिष्ट अर्पित करना सही है? हमें तो श्री भगवान के लिए तैयार किये गए भोग व् पुष्पमाल इत्यादि को सूंघना भी नहीं चाहिए |
वस्तुतः हम सब एक प्रकार से भगवान को उच्छिष्ट ही प्रदान करते है : नाम संकीर्तन में | हम नाम संकीर्तन में श्री भगवान को उनके नाम अर्पित करते हैं, लेकिन उससे पहले उन नामों का रसास्वादन हम स्वयं करते हैं | उसके बाद ही हम पूर्ण भावना युक्त श्री भगवान को नाम अर्पित करते हैं | हम स्वयं भी उच्छिष्ट ग्रहण करते हैं, उदाहरणार्थ मधु, रेशम इत्यादि | हम ये कहते हैं की शहद शत प्रतिशत शुद्ध है, परन्तु वह भी मधुमक्खियों का उच्छिष्ट ही होता है |
गोदा देवी ने दो प्रकार के उच्छिष्ट अर्पित किये:
१ पामालई : गीतों की माला
२ पूमालई : पुष्पों की माला
उन्होंने तीन मालाएं अर्पित करी :
१ पुष्पमाला
२ गीतमाला
३ वे स्वयं
४. गोदा तस्यै नमैदमिदम् भूय एवास्तु भूयः :
ऐसी श्री गोदा महारानी को मै बारम्बार प्रणाम करता हूँ तथा बारम्बार स्वयं को उन्हें समर्पित करता हूँ |
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