
भावार्थ
संत कवयित्री श्री आण्डाल का अवतरण श्रीविल्लिपुत्तूर (पुदुवई) में हुआ था, जो कि राजहंसों से आच्छादित चावल के खेतों तथा जलाशयों से घिरा हुआ था | हम सब श्री आण्डाल का वंदन करते हैं जिन्होंने अपने मधुर स्वर में गाये हुए गीतों की माला को श्री भगवान को अर्पित करी, तथा अपनी पहनी हुई उच्छिष्ट माला को भी उन्हें अर्पित किया |
व्याख्या
वयर – फसल
अन्नम – हंस
श्रीविल्लिपुत्तूर के खेत राजहंसों से भरे हुए हैं | जब हम लोग साधारण खेतों को देखते हैं, तो हमें तो केवल बतख-बगुले ही दीखते हैं, जो अपने स्वभावानुरूप विचरण करते एवं मछलियों का शिकार करते रहते हैं | लेकिन श्रीविल्लिपुत्तूर के खेत विलक्षण हैं | वे सुन्दर हंसों से भरे हुए हैं | हंसों की विशेषता होती है की वे दूध और पानी को अलग कर सकते हैं |
हम जीव ही हंस हैं और ये शरीर क्षेत्र| हम स्वयं भी क्षेत्र हैं और परमात्मा हंस|
(इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते, गीता 13.२ ) |
ये सब केवल सामान्य हंस नहीं, बल्कि परमहंस हैं, जैसे श्री रामानुज, श्री वरवर महामुनि, श्री वेदांत देशिक | हंस बेहद सुंदरता पूर्ण ढंग से चलते हैं | गोदा देवी इन हंसों को सुंदरता पूर्ण ढंग से चलना सिखाती हैं, अतः उन्हें “अन्नवयळ् पुदुवइ आण्डाळ ” इस नाम से पुकारा गया है |
उन्होंने रंगनाथ भगवान को कई सुन्दर गीतों की माला(जैसे तिरुप्पवई) अर्पित करी | इसे अलावा उन्होंने स्वयं एक पुष्पमाला पहनी और उस पहनी हुई उच्छिष्ट माला को रंगनाथ भगवान् को अर्पित किया |
उन्होंने हम जीवआत्माओ को समझाया है, ” तुम स्वयं एक माला बन जाओ और स्वयं को श्री भगवान को अर्पित कर दो | अपने मुख से उनके नामों का संकीर्तन करो | उनको किसी के दबाव में नहीं, बल्कि स्वतः प्रेम से अर्पित करो | ”
हमें श्री गोदाम्बा के नामों का भजन करना चाहिए |
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