
भावार्थ
हे गोदा देवी! आप दामिनी के सदृश अंगकान्ति वाली हैं! आपने उस माला को, जो श्री रंगनाथ भगवान के लिए थी, पहले स्वयं पहना तथा उसके बाद उसे श्री भगवान को प्रदान किया | काव्य कला में निपुणता से आपने सुप्रसिद्ध एवं प्राचीन तिरुप्पवई की रचना करी | कई सुन्दर कंकणों से विभूषित हे श्री गोदा देवी! हमपर अपनी करुणा दृष्टि करिये जिससे हम उसी तीव्रता से श्री कृष्ण में प्रेम रखें, जिस तीव्रता से आपने कामदेव को कहा था, “हे कामदेव! कृपया प्रसन्न हों और मुझे वेंकटगिरि के प्रभु की दुल्हन व दीन दासी बना दें ! ”
तात्पर्य
शुडर्कोडिये – स्वर्णमयी लता | लता को बढ़ने के लिए किसी सहारे की आवश्यकता रहती है | वे हमारे सबके सहारे श्री भगवान ही हैं | वे ही ” उपाय” हैं |
शूडिकोडुत्त – पहले स्वयं को (पुष्पमाल से) आभूषित किया, उसके बाद श्री भगवान को | इस कारण गोदाम्बा जी को शूडिकोडुत्त नाचियार भी कहा जाता है|
तोल्पावई – प्राचीन विधान
पाडि अरुळ वळ्ळ – आपकी गान और काव्य कला में निपुणता | गोपियों ने व्रत के विषय में कोई गायन नहीं किया लेकिन गोदा जी ने व्रत के विषय में गाया और शिक्षा दिया| इस तरह से गोदा द्वापर की गोपिकाओं से भी महान हैं|
पल्वळयाय – आपके करकमल कंकणों से विभूषित हैं | ये इंगित करते हैं की वे अपने सहारे, अपने वल्लभ श्री भगवान् के साथ विराज रही हैं | प्रभु ने आपको अपनी मौजूदगी से शोभायमान किया है | वो आपकी आज्ञाओं का पालन करते हैं | वो आपके सरस दयालु पति हैं | आप, हमारी माँ, उनतक अपनी पहुँच का बहुत अच्छे से इस्तेमाल करती हैं!
यहां एक और गहरा प्रयोग यह है की प्रियतम की मौजूदगी में नायिका के लिए कंकण भी अंगूठी बन जाते हैं, और वियोग में अंगूठी भी कंकण बन जाती है | तो कंकणों का सांकेतिक और आलंकारिक प्रयोग है |
कुछ ऐसे ऋषि हैं जिन्होंने श्री भगवान के लिए तप किया, पर फिर आते हैं हमारे आळ्वार संत, जिनके लिए श्री भगवान तप करते हैं!
ऐसी हमारी आळ्वार गोदा महारानी की जय हो!
नाचियार थिरुमोज़ी में गोदा जी तिरुमला के श्रीनिवास श्री वेंकटेश्वर भगवान से प्रार्थना करती हैं कि वो उन्हें श्री रंगनाथ को पति रूप में देकर अनुगृहित करें | रामानुज स्वामीजी ने जब तिरुपति में गोविन्दराज मंदिर का निर्माण करवाया तो वहाँ माता के रूप में श्री गोदाम्बा जी को ही प्रतिष्ठित करवाया|

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