तिरुपावै 6

श्री गोदाम्बाजी ने पिछले ५ पाशुरों में व्रत की अवतारिका को बताया है और आगे १० गाथाओँ में सखियों को जगाती है

पुल्लम् सिलम्बिनकान् पुल्लरैयन् कोयिलिल्| वेल्लै विलिसन्गिन् पेररवम् केत्तिलैयो||

पिल्लाय एऴुन्दिराय पेय्मुलै नन्ञुण्डु| कल्ल च्चगडम् कलक्कऴिय क्कालोच्चि ||

वेल्लत्तरविल् तुयिल् अमरन्द वित्तिनै| उल्लत्तु कोन्दु मुनिवर्गलुम् योगिगलुम्||

मेल्ल एऴुन्दरि एन्ऱ पेर् अरवम् | उल्लम् पुगुन्दु कुलिन्देलोर एम्पाय्||

संस्कृत अनुवाद

Ts6

हिंदी छन्द अनुवाद 

Th6

images (1)

पक्षी भी चहक रहे हैं; क्या तुम मंदिर में महान शंख की प्रचण्ड ध्वनि नहीं सुन सकते?

जागो, हे युवा गोपी, अपने मन में यह विचार करना कि जिसने पुतना का दूध पिया है, जिसने पैरों के ठोकर से शकटासुर का संहार किया, वह जो पूरे ब्रह्मांड का निमित्त और उपादान कारण है, और वह जो क्षीरसागर में आदि-शेष पर शयन करते हैं; ऋषि और योगी अपने योग से धीरे-धीरे बाहर आ चुके हैं, जोर-जोर से हरि नाम का जाप करते हुए, उन नामों को हमारे दिलों में प्रवेश प्रवेश कर हमें तरोताज़ा करने दो।

वेद हमें अकेले आनंद लेना नहीं सिखाते हैं। केवालाघो भवति केवालादि (रिग-वेद)। जो अकेला खाता है, वह पाप खाता है। गोदा एक शिक्षिका होने के नाते, हमें भागवतों के संग आनंद लेने के लिए सिखाती हैं।

गोदा उन गोपियों के घर जाती है जो अभी तक सो रही थीं और उन्हें जगाती हैं। ऐसा क्यों है कि कुछ गोपियाँ अभी भी सो रही थीं? क्या वे निष्ठावान नहीं थे या कृष्ण के प्रति प्रेम नहीं रखते थे? ऐसा नहीं है। प्रभु की कृपा नशे की तरह है। जैसे नशा में अलग-अलग लोग अलग-अलग व्यवहार करते हैं, कुछ जमीन पर लुढ़कते हैं, कुछ सड़कों पर सोते हैं, कुछ गहरे दर्शन देते हैं; इसी तरह भक्त भी जिनपे भगवत-कृपा से भगवद-अनुभव में मंत्रमुग्ध होते हैं। गोदा हमें उस स्तर की भक्ति दिखाती हैं, ताकि हम उन्हें आत्मसात कर सकें। कुछ गोपियां इतनी भावुक थीं कि वे समय से पहले पहुंच गईं, कुछ पूरी रात सो नहीं पाईं और कुछ ऐसी भाव-समाधि में थीं कि वे हिल भी नहीं पा रही थीं। ठीक वैसे हीं जैसे दामोदर लीला को याद करने के उपरान्त, 6 महीने तक सठकोप सूरी आलवार मूर्छित रहे थे। भगवान को ‘अनंत’ कहा जाता है क्योंकि उनके ‘कल्याण-गुण’ अनंत हैं। सठकोप सूरी आलवार (नम्मालवार) का कहना है कि भगवान की महिमा का आनंद लेते हुए भक्त पागल हो जाते हैं, कुछ नाचने लगते हैं, कुछ रोने लगते हैं, कुछ भाव-समाधि में पहुंच जाते हैं। वे खुद को खो देते हैं और आनंद में डूब जाते हैं।

एक और कारण कि हमें हमेशा भक्तों की संगति में रहना चाहिए| जब हम फिसलते हैं तो वे हमें पकड़ लेते हैं। जैसे हरिद्वार में गंगा का प्रवाह तीव्र और अति-शीतल होता है, इसकारण हम एक जंजीर पकड़ कर स्नान करते हैं| वैसे ही ठगिनी माया दे बचने के लिए हमें हमेशा भक्तों का हाथ पकड़े रहना चाहिए। भगवान बढ़े तालाब की तरह है, जैसे बढ़े तालाब में एक दो व्यक्ति सधैर्य उत्तर नहीं सकते, उसी तरह भगदनुभव करने के लिए बहुत लोग मिलकर एकत्रित होते है ।

गोदा समूह में शामिल होने के लिए गोपीयों को आमंत्रित करती हैं। वह भक्ति के विभिन्न स्तरों के अवस्थाओं का वर्णन करती है ताकि हम उन्हें आत्मसात कर सकें। ऐसी करुणा है उनकी। द्वापर के गोपीओं ने व्रत किया लेकिन उन्होंने व्रत के बारे में स्वयं नहीं गाया। इस प्रकार द्वापर-युग की गोपियों की तुलना में श्री श्रीविल्लिपुत्तुर की गोपियाँ और भी श्रेष्ठ हैं।

images (2)

पुल्लम् सिलम्बिनकान् पुल्लरैयन् कोयिलिल् वेल्लै विलिसन्गिन् पेररवम् केत्तिलैयो

पुल्लम् – पक्षी भी;

सिलम्बिनकान् – चहक रहे हैं;

पुल्लरैयन् कोयिलिल्- पक्षियों के राजा (गरुड़) के गुरु के मंदिर में;

वेल्लै विलिसन्गिन् – सफेद शंख हर किसी का ध्यान आकर्षित करने में सक्षम;

पेररवम् – वज्र ध्वनि;

केत्तिलैयो? – क्या तुम नहीं सुन पा रहे हो?

गोदा एक गोपी के घर के सामने आती हैं और उसे जगाने की कोशिश करती हैं। अंदर शयन कर रही गोपी को यकीन नहीं है कि प्रातःकाल हो चूका है,  भले ही अन्य लोग जाग रहे हों। इसलिए गोदा यह साबित करने के लिए तर्क देती हैं कि यह जागने का समय है। क्या तुम पक्षियों की चहक नहीं सुन रही हो, गरुड़ के स्वामी (विष्णु) के मंदिर से सफ़ेद शंख की गूंजती ध्वनि नहीं सुन रही हो? क्या तुम उस आवाज़ को सुनने का भाग्य को खोने जा रही हो जो तुम्हें कृष्ण के पास जाने के लिए बुला रही है?

आतंरिक अर्थ:

पक्षी आचार्य और भक्त हैं, जो सुबह जल्दी उठे हैं, कृष्ण के कालेपन के दर्शन प्राप्त करने की इच्छा से। पक्षी की ध्वनि उनके उपदेश का संकेत दे रहे हैं जो हमें अज्ञानता रूपी निद्रा से जगाता है। शंख की ध्वनि अष्टाक्षर महामंत्र है। शंख की प्रचंड ध्वनि यह घोषणा करती है कि कृष्ण सर्व-शेषी (सभी का स्वामी) है और हम उसका शेष (अनन्त सर्व) हैं।

अगले 10 पासुरों में 10 गोपीयों का आंतरिक अर्थ 10 आलवारों को जगाने का है। इस श्लोक में पोइगई आलवार को जगाने का भाव है।

पिल्लाय एऴुन्दिराय

पिल्लाय :(भगवत-विषय में नयी) हे युवा गोपी!

एऴुन्दिराय – (जल्दी से) उठो;

चूंकि तुम भक्ति में नयी हो इसलिए सोचती हो कि तुम अकेले भगवान का आनंद ले सकती हो। लेकिन ओह मेरी सखी! कृपया उठो! यह आनंद तभी है जब हम सभी एक साथ आनंद लेते हैं। कृपया हमें आप के साथ जुड़ने और दोनों के लुत्फ़ उठाने का आनंद दें – कृष्ण का नटखटपन और आपकी संगति।

अंदर गोपी को आश्चर्य हुआ, “तुम सब कैसे जाग गए”? हर जगह गूंजते भक्तों के हरि नाम जप ने हमें जगा दिया और हमें एक ताजगी भरा अहसास दिलाया – बाहर की गोपियाँ कहती हैं।

भीतरी अर्थ:

कृपया अपने बचकाने रवैये को त्याग दें कि परमपिता परमात्मा और आप एक ही हैं और अपने सेवक-स्वामी संबंध के बारे में सच्चा ज्ञान प्राप्त करें और उसके प्रति जागृत हों!

पेय्मुलै नन्ञुण्डु कल्ल च्चगडम् कलक्कऴिय क्कालोच्चि

पेय्मुलै नन्ञुण्डु: पिया (उसकी आत्मा के साथ) दानव पुताना का जहरीला दूध (मां की तरह प्रच्छन्न);

कल्ल च्चगडम् : दुष्ट शकटासुर; (असुर/दानव जो गाड़ी के रूप में आया था)

कलक्कऴिय: अपना रूप खोना;

क्कालोच्चि:  अपने दिव्य पैरों को उठाया;

दो लीला यहाँ वर्णित है:

  1. पुतना के जहरीले दूध को पीकर उसकी आत्मा को खिंच लिया। भगवान कृष्ण के पैरों ने स्वयं कृष्ण को भी बचा लिया। इस प्रकार, भगवान के पैर स्वयं उनसे भी बड़े हैं। भगवन ने अपनी रक्षा कर समस्त ब्रज को बचाया क्योंकि गोप और गोपियाँ केवल कृष्ण को देखने के लिए ही जीवित हैं। भगवान की ऐसी कृपा “आश्रित-वात्सल्य-जलध” है। जब कन्हैया ने पूतना को छुआ, तब वह शुद्ध हो गयी और जब उसे जलाया गया तो चंदन की लकड़ी से भी अधिक सुगंध फैला।

पूतना ने ‘विष’ दिया, जबकि संसार हमें ‘विषय’ (इन्द्रिय-भोग की वस्तु) देता है। इस प्रकार, जब हम कृष्ण से संबंध जोड़कर विषय का उपयोग करते हैं, तो हम भी शुद्ध हो जाते हैं और परम-पदम प्राप्त करते हैं।

  1. जिसने अपने दिव्य पैरों की एक लात से शकटासुर को नष्ट कर दिया। शकटासुर एक ‘शकट’ यानी गाड़ी में था। गाड़ी शरीर का प्रतिनिधित्व करती है। दो पहिये कर्म हैं : पाप और पुण्य। कृष्ण स्वयं शरीर-बंधन को तोड़ देते हैं (अहैतुकी कृपा), पाप और पुण्य को नष्ट करते हैं और अपने अपने दिव्य चरण आत्मा को प्रदान करते हैं।

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आंतरिक अर्थ:

लड़कियां पुतना और शकटासुर की चर्चा कर रही हैं ताकि निद्रा त्यागने में असमर्थ गोपी को अपने कृष्ण के लिए आने वाले खतरों के बारे में सोचकर झटका लगे और वह जाग जाए।

काम और क्रोध का परिणाम अहंकार और ममकार से होता है, जिसका परिणाम होता है : ‘स्वातंत्रियम्’ अर्थात् गलत भावना कि हम कृष्ण से स्वतंत्र हैं| आत्मा के लिए यही विष है। आचार्य जहर को नष्ट करते हैं और इंद्रियों द्वारा संचालित हमारे शरीर (शकट) को सही दिशा देते हैं।

वेल्लत्तरविल् तुयिल् अमरन्द वित्तिनै

वेल्लत्त्क्षीरसागर में;

अरविल्दिव्य नाग के ऊपर;

तुयिल्शयन करते हुए;

अमरन्द: मदद करने और हमारी रक्षा करने के तरीकों के बारे में गहराई से चिंतन करते हुए;

वित्तिनै: सर्वोच्च भगवान जो ब्रह्मांड का निर्माता है;

प्रेम से आप्लावित हमारा दिल क्षीरसागर है और शरणागत आत्मा ‘आदि-शेष’ है। भागवान इस क्षीरसागर में निवास करने के लिए आते हैं और इस आत्मा रूपी विस्तर को अपना सनातन निवास बनाते हैं।

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उल्लत्तु कोन्दु मुनिवर्गलुम् योगिगलुम्

उल्लत्तु कोन्दु: ह्रदय में भगवान को धारण किये हुए

मुनिवर्गलुम्ध्यान करने वाला (सर्वशक्तिमान पर);

योगिगलुम्जो सेवा (कैंकर्य) करते हैं;

मुनि और योगी दो प्रकार के भक्त हैं-

  1. मुनि: वह जो हमेशा भक्ति में डूबा रहता है और
  2. योगी: जो अपनी गहरी भक्ति के कारण सेवाओं में भाग लेते हैं।

मेल्ल एऴुन्दरि एन्ऱ पेर् अरवम्

मेल्ल एऴुन्द: धीरे-धीरे उठें (बिना परम प्रभु को परेशान किए)

अरि एन्ऱ: दिव्य नाम (हरि: हरि: )

पेर् अरवम्: जोर से नाम-संकीर्तन;

नाम-संकीर्तन की निम्न परंपरा है:

  1. यात्रा के दौरान केशव।
  2. खाने के दौरान गोविंदा।
  3. सोते समय माधव।
  4. जागने के बाद हरि।

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उल्लम् पुगुन्दु: हमारे दिल में प्रवेश किया;

कुलिन्दे:- और ताज़ा;

एलोर एम्पाय्

हरिनाम संकीर्तन हमारे दिल में उतर कर कृष्ण से विरह के हमारे ताप को ठंढा कर रही है| इसलिए तुम भी जागो और हमारे दिव्य-समूह में शामिल हो|

हरिः हरति पापानिदुष्टचित्तैरपिस्मृतः

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स्वापदेश

एक अच्छा भोजन जब मित्रों और रिश्तेदारों के साथ आनंद लिया जाता है तो अकेले खाने की तुलना में अधिक खुशी मिलती है। यही कारण है कि गोदा अकेले सर्वशक्तिमान के दिव्य गुणों का आनंद नहीं लेना चाहती हैं, प्रत्येक गोपी के द्वार पर दस्तक देती हैं और उन्हें (6 से 15 वें श्लोक तक) के दिव्य अनुभव में शामिल होने के लिए जगाती है।

इन श्लोकों में गोदा एक दिव्य रहस्य को प्रकट करती हैं। भक्तों की सेवा भगवान की सेवा से बेहतर मानी जाती है। हम सभी सर्वोच्च प्रभु के संतान हैं। एक माँ चाहती है कि सभी बच्चे समान रूप से आनंद लें। इसलिए जब वे सभी हाथ मिलाएंगे और मां का मनोरंजन करेंगे तो वह सबसे ज्यादा खुश होंगी।

समान विचार वाले भक्तों के साथ समूहों में, प्रभु के दिव्य गुणों के अनुभव का आनंद लेना, भक्तों और भगवान दोनों को खुशी देता है।

प्रभात होने के तीन लक्षण बताये जाते है-
१.पक्षियों का कलकल निनाद
२.पक्षीराज मंदिर की शंख ध्वनि
३.योगियों का हरिनामोच्चारण
यहां पर सखी को बताया गया की सुबह हो गयी है पक्षी कोलाहल कर रहे है ।श्रीवैष्णव सुबह सभी मिलकर भगवान का नाम स्मरण कर रहे है । पक्षी के दो पंख होते है वैसे ही श्रीवैष्णव के लिए ज्ञान और अनुष्ठान रूपी दो पंख है । इन दोनों के रहने से मात्र सद्गति पा सकेगा ।
आचार्य भी इसी तरह रजस्तमगुणों से पूर्ण संसारी जीवात्त्माओं पर कृपा करके उन्हें इस विषयभोग रूपी नीन्द से उठाकर भगवान के सन्मुख करते है ।
आचार्य के श्री चरणों से संबंधित होनेवाला जीव गर्भगति, याम्यगति, धूमादीगति जैसे दूखी मार्गों को छोड़कर अर्चिरादीगति मार्ग द्वारा परमपद में सेवा का अधिकारी बना दिया जाता है ।
👉गर्भगति – शरीर छुड़ते ही दूसरे गर्भ में प्रवेश करना ।
👉याम्यगति – शरीर छुड़ते ही नरक में प्रवेश करना ।
👉धुमादिगति – शरीर छुड़ते ही स्वर्ग में प्रवेश करना ।
👉 अर्चिरादीगति – शरीर छुड़ते ही भगवान के धाम वैकुण्ठ में प्रवेश करना ।
शास्त्र बताता है की मीठी चीज का अनुभव अकेले नहीं करना किन्तु दूसरों से मिलकर उसका सेवन करना चाहिये । इस व्रत में भगवान का अनुभव मीठी चीज है, इसका अनुभव करने गोदम्बाजी सभी सखियों को जगाते हुए साथ मे बुलाती हुयी आगे बढती है ।
हमें जब कभी भी भगवान के दर्शन करने जाना है तो भागवतों के पुरुषकार से उनके साथ जाना चाहिये । अकेले नहीं जाना चाहिये । जैसे श्रीविभीषणजी ने भगवान के सन्निधि में जाने से पहिले सुग्रीव आदि पार्षदों का पुरुषकार माँगा । भगवान और भक्तों के मिलाप में दोनों तरफ सिफारिश करनेवाले भागवतों की आवश्यकता होती है ।

श्री गोदा रंगनाथ भगवान का मंगल हो

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Author: ramanujramprapnna

studying Ramanuj school of Vishishtadvait vedant

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