श्री वैष्णव संप्रदाय में दीक्षित (गुर्मुख) भक्तों के लिये
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पञ्च-संस्कार विधि के भाग के रूप में मंत्रोपदेश (रहस्य मंत्रो के उपदेश) दिया जाता है। उसमें आचार्य द्वारा शिष्य को 3 रहस्यों का उपदेश दिया जाता है। श्री पराशर भट्ट ने ‘अष्ट-श्लोकी’ में पहली बार इसके गूढ़ अर्थों को लिखित रूप दिया। श्री पिल्लै लोकाचार्य स्वामी ने मुमुक्षुपड़ी में इसके अर्थों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया एवं श्री वरवर महामुनि ने अपने व्याख्यान में इसके अर्थों को सरल भाव में समझाया। स्वामी वेदांत-देशिका ने भी ‘संप्रदाय-परिशुद्धि’ एवं ‘रहस्य-त्रय सारम्’ में विस्तृत वर्णन किया है।