पञ्च-भूतों एवं 11 इन्द्रियों का सम्बन्ध, भूतों के गुण

अब हम पंच-भूतों एवं 11 इन्द्रियों के सम्बन्ध के बारे में पढ़ेंगे। सभी भूतों में कौन कौन से गुण हैं एवं उनके विषय क्या हैं।

अबतक हम सात्विक अहंकार से पञ्च-ज्ञानेन्द्रिय, पंच-कर्मेन्द्रिय और मन की उत्पत्ति एवं तामसिक अहंकार से पंच-तन्मात्र एवं पंच-भूतों की उत्पत्ति पढ़ चुके हैं।

नैयायिकों के मत में इन्द्रिय भूतों से ही उत्पन्न होते हैं अर्थात इन्द्रिय भौतिक पदार्थ हैं। किन्तु ऐसा कहना शास्त्र-सम्मत नहीं है। विष्णु-पुराण की व्याख्या में विष्णुचित्त स्वामी सप्रमाण खण्डन करते हैं। इन्द्रियों को भौतिक इस कारण कहा गया है क्योंकि भूत इन्द्रियों के आप्यायक (पोषक) हैं। एवं ज्ञान-इन्द्रियों की उत्पत्ति में तन्मात्र सहायक होते हैं। कर्म-इन्द्रियों की उत्पत्ति में ज्ञान-इन्द्रिय सहायक होते हैं।

तन्मात्र के सहयोग से ज्ञानेन्द्रियों की उत्पत्ति

शब्द तन्मात्र के सहयोग से श्रोत्र इन्द्रिय, स्पर्श तन्मात्र के सहयोग से त्वग इन्द्रिय, रूप तन्मात्र के सहयोग से चक्षु इन्द्रिय, रस तन्मात्र के सहयोग से रसन इन्द्रिय एवं गन्ध तन्मात्र के सहयोग से घ्राण इन्द्रिय की उत्पत्ति होती है। पूर्व में पढ़ चुके हैं कि इन्द्रिय अणु एवं सूक्ष्म होते हैं। श्रोत्र का निवास कर्ण में, त्वग का निवास पूरे शरीर में, चक्षु का निवास आंखों के कृष्ण-तारा में, रसन का निवास जिह्वा में एवं घ्राण का निवास नासिका में। इस प्रकार प्रत्येक इन्द्रिय शरीर के किसी विशेष अंग के अग्र भाग में निवास करते हैं।

ज्ञानेन्द्रियों के सहकार से कर्मेन्द्रियों की उत्पत्ति।

श्रोत्र इन्द्रिय के सहकार से वाणी कर्मेन्द्रिय की उत्पत्ति होती है। त्वग से पाणी (हस्त) कर्मेन्द्रिय, चक्षु से पाद (पैर) कर्मेन्द्रिय, रसन से उपस्थ (मूत्र-विसर्जन कर्मेन्द्रिय) एवं घ्राण के सहकार से पायू (मल-कर्मेन्द्रिय)

भूतों के गुण

आकाश का एकमात्र विशेष गुण है शब्द।

वायु में स्पर्श के साथ शब्द (क्योंकि वो आकाश से उत्पन्न है और उसमें आकाश का भी गुण है।)

अग्नि में रूप के साथ शब्द और स्पर्श। (क्योंकि वो वायु से उत्पन्न है और उसमें वायु का भी गुण है।)

जल में रस के साथ शब्द, स्पर्श और रूप। (क्योंकि वो अग्नि से उत्पन्न है और उसमें अग्नि का भी गुण है।)

पृथ्वी में गन्ध के साथ शब्द, स्पर्श, रूप और रस। (क्योंकि वो जल से उत्पन्न है और उसमें जल का भी गुण है।)

इस प्रकार, पृथ्वी में सभी 5 गुण हैं। गन्ध गुण केवल पृथ्वी में है। शब्द गुण सभी पाँच भूतों में है।

भूतगुण
आकाशशब्द
वायुशब्द, स्पर्श
तेजस (अग्नि)शब्द, स्पर्श, रूप
आप: (जल)शब्द, स्पर्श, रूप, रस
पृथ्वी (भूमि)शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध

भूत एवं उनके विषय

सभी भूतों के विषय भी chart में दिए गए हैं। आकाश विभू है (अहंकार, महत एवं प्रकृति में व्याप्त नहीं है), सर्वत्र व्याप्त है। आकाश का संयोग सभी मूर्त द्रव्यों से है। पृथ्वी का विषय मिट्टी, पत्थर आदि है। जल का विषय सरित, समुद्र आदि। अग्नि/तेजस का विषय वह्नि, विद्युत, सुवर्ण, रजत आदि हैं। इन सभी विषयों में हम भूतों के गुणों को समझ सकते हैं।

पदार्थ विभाग भाग 1: प्रकृति से महत एवं महत से अहंकार एवं सात्त्विक अहंकार से 11 इन्द्रियों की उत्पत्ति

पदार्थ शब्द का अर्थ क्या है? पदस्य अर्थ: पदार्थ:। इस प्रकार पदार्थ अर्थात तत्त्व।

पदार्थ के दो प्रकार हैं: द्रव्य और अद्रव्य।

अद्रव्य की चर्चा बाद में करते हैं। द्रव्य वो हैं जो गुण या क्रिया का आश्रय हैं। जो अवस्थान्तर को प्राप्त होते हैं।

द्रव्य के दो प्रकार हैं: चित और अचित। चित अर्थात चैतन्य का आश्रय द्रव्य। जिसमें चैतन्य अर्थात ज्ञान हो। अचित अर्थात चैतन्य का अनाश्रय द्रव्य। जिसमें चैतन्य अर्थात ज्ञान न हो।

चित दो प्रकार के हैं: जीवात्मा और परमात्मा।

अचित तीन प्रकार के हैं: प्रकृति (मिश्र सत्त्व), काल और शुद्ध-सत्त्व।
प्रकृति भगवान का लीला उपकरण है।

मिश्र सत्त्व कुल मिलाकर 24 तत्त्व हैं। बाकि 23 तत्त्व प्रकृति के ही विकार हैं। प्रकृति अर्थात मूल/ उपादान कारण। इसी को अविद्या और माया भी कहते हैं। मूल प्रकृति तक सम सृष्टि है। सत्त्व, रजस एवं तमस समान मात्रा में होने के कारण अनुद्भूत होते हैं।

प्रकृति के बाद की सृष्टि विषम सृष्टि हैं। सत्त्व, रजस एवं तमस विषम मात्रा में होने के कारण उद्भूत अवस्था में होते हैं।

प्रकृति से उत्पन्न है महान, जो सात्त्विक, राजसिक एवं तामसिक 3 प्रकार का होता है। महान को ही बुद्धि भी कहते हैं। महान से उत्पन्न होता है सात्त्विक, राजसिक एवं तामसिक अहंकार। ये अहंकार तत्त्व ही अभिमान का हेतु है।

सात्त्विक अहंकार से उत्पन्न होते हैं 11 इन्द्रिय। ये दो प्रकार के हैं: ज्ञानेन्द्रिय एवं कर्मेन्द्रिय।

ज्ञानेन्द्रिय 6 हैं: 5 बाह्य ज्ञानेन्द्रिय एवं 1 आन्तर ज्ञानेन्द्रिय अर्थात मन या अंतःकरण। 5 बाह्य ज्ञानेन्द्रिय हैं: घ्राण (सूंघने का इन्द्रिय), रसन (स्वाद का इन्द्रिय), चक्षु (देखने का इन्द्रिय), त्वक् (स्पर्श का इन्द्रिय), श्रोत्र (श्रवण का इन्द्रिय)। ये क्रमशः गन्ध, रस, रूप, स्पर्श एवं शब्द के ग्राहक हैं। (इन्द्रिय अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं, इन्हें शरीर के अंग नासिका, आँख आदि न समझें| अपितु इन्द्रिय शरीर अंगों के अग्र भाग में रहते हैं)|

5 कर्मेन्द्रिय हैं: वाक्, पाणि, पाद, पायू (मूत्र विसर्जनका इन्द्रिय) एवं उपस्थ (मल विसर्जन का इन्द्रिय)। ये क्रमशः वचन, आदान, गमन, विसर्जन एवं आनन्द के हेतु हैं।

तामस अहंकार से 5 तन्मात्र एवं 5 भूत उत्पन्न होते हैं।

राजस अहंकार दोनों के कार्य में सहकारी होता है।