श्री वैष्णव तिलक के निहितार्थ
श्री वैष्णव उर्ध्व-पुण्ड्र में दो सफेद रेखाएँ और उनके बीच एक लाल रेखा होती है| आइये इसके निहितार्थ समझते हैं:
- उर्ध्व पुण्ड्र की सफेद रेखाएँ भगवान् के चरण चिह्न एवं लाल रेखा माता श्री देवी के चरण चिह्न का प्रतिनिधित्व करते हैं। थेन्कल वैष्णव उर्ध्व पुण्ड्र के नीचे आसन भी देते हैं हालाँकि वडकल वैष्णव ऐसा नहीं करते।
- दूसरी व्याख्या यह भी है कि दो उजली रेखायें क्रमशः जीवात्मा और परमात्मा को दर्शाती हैं और मध्यम लाल रेखा जीवात्मा एवं ब्रह्म के बीच स्थित माया (प्रकृति) को।
- जीवात्मा को परमात्मा की शरणागति से पहले महालक्ष्मी माता की शरणागति करनी चाहिए। ममतामयी माता के जरिये हम भगवान के चरणकमलों का आश्रय लेते हैं । सफेद रेखाएँ बीच की लाल रेखा माता के ‘पुरुषकारत्वं को दर्शाती है|
मानसकार कहते हैं: उभय बीच शोभति कैसे, जीव ब्रह्म बिच माया जैसे। वैष्णव तिलक इसी तत्त्व-त्रय सिद्धांत का प्रतिपादन करती है|
प्रकार हमारा वैष्णव तिलक ॐकार को दर्शाता है। ओंकार को वेदों का सार भी कहा जाता है (सकल वेद सारम्)
अ :- अकार का अर्थ जगत की श्रृष्टि, स्थिति एवं संहार करने वाले भगवान विष्णु हैं| (जन्मादि यस्य यतः)
अक्षरानाम अकारो अस्मि (गीता)
उ:- उकार भगवान (अकार) एवं जीवात्मा (उकार) के विशेष संबंध को दर्शाता है, जो किसी अन्य संबंध के समान नहीं है| उकार यह दर्शाता है कि मकार अर्थात जीवात्मा केवल और केवल अकार अर्थात परमात्मा भगवान विष्णु का ही दास है|
उकार जीवात्मा एवं परमात्मा के मध्य संबंध स्थापित करने वाली ‘जगन्माता महालक्ष्मी’ को भी दर्शाता है|जयंत की रक्षा भी माता सीता ने ही की थी|
म:– मकार जीवात्माओं (चेतन) को दर्शाता है| वर्णमाला में ‘म’ २५ वाँ अक्षर है एवं वेदांत में जीवात्मा को भी २५ वाँ तत्त्व कहा गया है (२४ अचेतन, २५ वाँ चेतन एवं २६ वाँ ईश्वर)
हमारे वैष्णव तिलक (उर्ध्व-पुन्ड्र) में भी एक उजली रेखा ‘अ’कार (विष्णु) को दर्शाती है तथा दूसरी उजली रेखा ‘म’कार (जीवात्मा) को। मध्य कि लाल रेखा ‘उ’कार को दर्शाती है।
स्वामी वेदांत देशिका ओंकार का निम्नलिखित अर्थ बताते हैं:
- अ – अनन्यार्घे शेषत्वं
- ऊ – अनन्य शरणत्वं
- म – अनन्य भोगत्वं